श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
‘श्रीराधा-माधव-चिन्तन’ पर सम्माननीय विद्वानों के विचारग्रन्थ का विषय है राधाकृष्ण-तत्त्व। तत्त्वानुभूति साधन तथा ध्यान की अपेक्षा रखती है। चिन्तन एवं मनन की गम्भीरता ही ध्यान हैं इस ध्यान की सहायता से ही राधा-कृष्ण के तत्त्व की उपलब्धि हो सकती है। ग्रन्थ के नामकरण में ग्रन्थकार के सार्थक प्रयास की यथार्थ अभिव्यक्ति हुई है। रसतत्त्व प्राकृत और अप्राकृत दो प्रकार का हो सकता है। अप्राकृत रस की नित्यता और सार्वजनीनता स्वयं सिद्ध है। राधा-कृष्णतत्त्व यह अप्राकृत रसतत्त्व है। श्रीगुरु कृपा एवं साधन की सहायता से जिस परिमाण में चित्तवृत्ति निर्मल होती है, उसी परिमाण में इस तत्त्व की अनुभूति हुआ करती है। अनुभूति के चरम उत्कर्ष से ही रस तत्त्व में सिद्धि प्राप्त होती है। इस ग्रन्थ में किया हुआ राधाकृष्ण तत्त्व तथा रसतत्त्व का अपूर्व-विचार-विश्लेषण रसिकजनों के लिये अपरिमेय भोग्य है। आस्वादन में राधा-कृष्ण तत्त्व नित्य नूतन और ‘स्वादु-स्वादु पदे-पदे’ है। साधन-सम्पत्ति की गम्भीर अनुभूति के साथ अनन्य साधरण पण्डित्य का संयोग होने पर ही इस प्रकार के ग्रन्थ की रचना हो सकती है- इस क्षेत्र में वही हुआ है। ग्रन्थ के विशेषत्व और ग्रन्थकार के कृर्तित्व को भाषा के माध्यम से प्रकट करना सम्भव नहीं है। जो अनुभवगम्य है, उसे बोलकर समझाया नहीं जा सकता। इसीलिये ग्रन्थ की विस्तृत आलोचना न करके हम राधाकृष्ण-प्रेम-पिपासु भक्तों को इस ग्रन्थ का पठन-अध्ययन करने के लिये सादर आहृान करते हैं। इससे वे तृप्त और कृतार्थ होंगे- यह कहना अत्युक्ति न होगा। हम चाहते हैं- इस ग्रन्थ का बँगला-संस्करण शीघ्र प्रकाशित हो। अन्यथा, हिंदी से अनभिज्ञ बँगला पाठक-पाठिका ग्रन्थ के अपूर्व रस-माधुर्य के आस्वादन से वच्चित रहेंगे, जो वाच्छनीय नहीं है। |
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