श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
‘श्रीराधा-माधव-चिन्तन’ पर सम्माननीय विद्वानों के विचारमैं तो श्रीराधा-माधव-चिन्तन को जितना पढ़ सका, पढ़ता गया और मुझे ऐसा लगा कि हिन्दी साहित्य तथा हिन्दू धर्म को यह अनुपम देने है। मेरे मन में भी यह शंका-सी बनी थी कि राधा तथा कृष्ण के सम्बन्ध को खींचातान कर प्रकृति, पुरुष, मायातथा ब्रह्म का मेल कहा जा सकता है। पर उस सम्बन्ध की वास्तविक दार्शनिकता अब समझ में आयी। यह ग्रन्थ दर्शन शास्त्र का उत्कृष्ट ग्रन्थ है। श्रीपोद्दारजी को मेरा अनेक धन्यवाद तथा साधुवाद कहें। श्री पोद्दारजी ने अपने विश्वासनुसार भक्ति-भावपूर्ण व्रज-रस-माधुरी की बड़ी सुन्दर एवं सफल अभिव्यक्ति की है। इसके पाठ से एक अद्भुत साहित्यिक आनन्द की उपलब्धि होती है। चारु चिन्तन और गम्भीर अध्ययन की आभा पुस्तक के प्रत्येक पृष्ठ से परिलक्षित होती है। जो लोग आनन्दकन्द व्रजचन्द श्रीकृष्ण भगवान को योगिराज एवं महान् गीता-गायक के रूप में ही स्मरण करते हैं, वे भी व्रज-रस से आप्लावित इस सुन्दर साहित्यिक रचना का अभिनन्दन करने में गौरव-गर्व अनुभव करेंगे। श्रीपोद्दारजी के इन निबन्धों में भाषा-सौन्दर्य और वर्णन-वैचित्रय की छबीली छटा स्पष्ट दिखायी देती है। मैं इस साहित्यिक सत्-सर्जन के लिये उनकी हार्दिक प्रशंसा करता हूँ। |
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