श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
‘श्रीराधा-माधव-चिन्तन’ पर सम्माननीय विद्वानों के विचारहिंदी की प्रसिद्ध धार्मिक पत्रिका ‘कल्याण’ के विख्यात सम्पादक श्रीहनुमान प्रसाद पोद्दार के प्रवचनों तथा लेखों का संग्रह ही यह ग्रन्थ है। श्रीकृष्ण की नित्य प्रेमास्पदा श्रीराधा के धार्मिक और दार्शनिक महत्त्व का विवेचन इस ग्रन्थ से हुआ है। विश्व का नित्य आधार वह परम ब्रह्म है और उसी ब्रह्म के दो स्वरूप राधा और माधव हैं। लोकगीत और गाथाएँ, जो सम्पूर्ण भारत में कही-सुनी जाती हैं, उनमें और वैष्णव-साहित्य में राधा और माधव का बहुत वर्णन आया है। उन्हीं राधा-माधव के बारे में लेखक ने भाव और भक्ति पूर्ण भाषा में अपने विचार व्यक्त किये हैं तथा राधा-माधव के गहनतम दार्शनिक और धार्मिक महत्त्व की व्याख्या की है। इस ग्रन्थ में एक अध्याय श्रीराधा, गोपी और श्रीकृष्ण के महारास पर भी है, जिसमें रास के अर्थ और महत्त्व का स्पष्टीकरण हुआ है। रास श्रीकृष्ण के बाल्यकाल का ऐसा आकर्षक प्रसंग है, जिसका श्रीकृष्णोपासकों ने एक विशेष और गहन अर्थ लगाया है तथा जिसका चराचर व्यापी महत्त्व है। ग्रन्थ की भाषा अत्यधिक परिमार्जित है। उसकी छपाई एवं सुसज्जा सुन्दर और नयनाभिराम है। आध्यात्मिक साधकों के लिये यह ग्रन्थ एक विशेष आकर्षण की वस्तु है। ऐसे कठिन विषय की जिस सुन्दर शैली में विवेचना की गयी है, इसके लिये लेखक सराहना और धन्यवाद का पात्र है। हिंदी-साहित्य में ‘कृष्णस्तु भगवान स्वयम्’ की आहृदिनी शक्ति प्रेमपुज्जा ‘व्रजेश्वरी श्रीराधा’ पर किसी की लिखी पुस्तक प्राप्त नहीं थी। हिंदी में इसका बड़ा अभाव खलता था। कहने को पूर्वा पर की दो पुस्तकें हैं, पर वे कोरी श्रीराधासम्बन्धी इतिहास की कल्पना मात्र हैं। उनमें सरस सुगन्ध नहीं है। मान्यवर श्रीहनुमानप्रसाद जी पोद्दार सम्पादक कल्याण गोरखपुर, जिन्हें हम श्रीभाई जी कहकर पुकारते हैं, की अनुपम कृति ‘श्रीराधा-माधव-चिन्तन’ हिंदी-साहित्य के लिये अनुकरणीय सुन्दर तथा सरस देन हैं। वह एक महान भक्त हृदय द्वारा लिखी गयी है तथा सम्पूर्ण अंगों से भरपूर है। वह गोपाल-भोग के लिये घी-शक्कर से बना वह लड्डू है, जिसमें मेवा-मिश्री संयुक्त साहित्य के सभी कथनीय अङ उजले बन रहे हैं। अतः प्रसाद रूप जो भी अंश हाथ में आ जाय, वही भव के नाना रोगों से उबारने वाला पुष्कल साधन, मन को अहर्निश कीर्तिकुमारी श्रीराधा तथा यशोदानन्दन कन्हैया के चिन्तन में निमन्ग कर जीवों का महान् उपकार करने वाला महद् ग्रन्थ है। अतः उसके प्रति उसके प्रति कुछ कहना-सुनना सम्भव नहीं। श्रीभाई जी को इस ग्रन्थोत्थान के लिये मेरा कोटि-कोटि धन्यवाद है। मैं तो ग्रन्थ की महानता पर नित्य-नित्य न्यौछावर होता हूँ। |
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