श्रीकृष्णांक
श्रीकृष्ण-परत्वम्
1. महाविष्णोरंशी विधिशिवजयीदर्पशमको जिनकी आज्ञा से श्रीब्रह्मा, श्रीविष्णु और श्रीशंकर जगत की उत्पत्ति, स्थिति और संहार करते हैं, जिनकी माया ब्रह्मादि देवताओं को भी मोहित करती है तथा जो श्रीब्रह्मा और शंकर को भी जीतने वाला है उस (कामदेव) के अभिमान का भी निर्मलन करने वाले हैं एवं श्रीमहाविष्णु के भी जो अंशी (जनक) हैं, अहह ! व़े श्रीकृष्णचंद्र मेरे जैसे नर पशु द्वारा कैसे वर्णनीय (वर्णन किये जाने योग्य) हो सकते हैं ?[1] ।।1।। इसमें श्लोक के पाठ-क्रम से प्रमाण दिये जाते हैं- ‘महाविष्णोरंशी’ इस विषय में श्रीब्रह्मासंहिता में कहा है- यस्यैकनि: श्र्वसितकालमथावलम्ब्य अर्थात जिनके एक नि:श्र्वासकाल का अवलम्बर करके उनके रोम विवर से उत्पन्न होने वाले ब्रह्माण्ड पति जीवन धारण करते हैं, वे महाविष्णु (कारणार्णवशायी भगवान) जिनकी कोई कला विशेष हैं, उन आदिपुरुष श्रीगोविन्द को मैं नमस्कार करता हूँ । श्रीब्रह्मावैवर्तपुराण में भी कहा है- ‘महाविराण्महाविष्णुस्त्वं तस्य जनको विभा !’ इत्यादि अतएव ‘श्रीगोविन्द विरुदावली’ में श्रीरुपगोस्वामीचरण लिखते हैं- ब्रह्मा ब्रह्माण्डभाण्डे सरसिजनयन स्त्रष्टुनाक्रीडनानि तथा श्रीहरिवंश के ‘अहं स भरतश्रेष्ठ मत्तेजस्तत्सनातनम्’ इस श्लोक की टीका में टीकाकार लिखते हैं कि ‘ईदृशामनेकेषामीश्र्वराणामाश्रयोअहं फलमिवानेकंषां बीजानाम्’ इत्यादि ।
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ यहाँ यह पाठान्तर भी है-
यदीयासौ माया रचयति निमेषेअण्डनिचयान्। भज श्रीकृष्णं तं ह्यसुलभमवाप्यात्र नृभवम् ।।
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |