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राग-गौरी
बहुत-सी सौभाग्यवती सुन्दरी स्त्रियाँ और गोपकुमारियाँ एक-दूसरी के प्यारे पति का नाम ले-लेकर परस्पर गाली गा रही हैं। (गोकुल के) घर-घर में अतिशय आनन्द हो रहा है। स्थान-स्थान पर नृत्य हो रहा है। पूरा गोकुल नगर ही भेंट ले-लेकर श्रीनन्दजी के द्वारपर उमड़ पड़ा है। आँगन को चन्दन से लीपकर आरती सजाकर रखी गयी है। गोपकुमारियाँ कहती हैं-‘यदि ऐसा आनन्द नित्य हुआ करे.........., युवतियाँ सात सींको से सजाकर द्वारपर स्वस्तिक चिह्न बना रही हैं। नवकिशोरियाँ आनन्दित होकर बार-बार श्रीयशोदाजी के पैर पकड़ लेती हैं। गोपिकाओं ने (श्रीयशोदाजी को) आलिंगन करके (उनसे उपहार में मिले) आभूषण तथा वस्त्र पहिन लिये। (दूसरी ओर) गायों तथा बछड़ों को सजाकर ले आये। गोपों की भीड़ एकत्र हो गयी। सभी गोपियाँ और गोप प्रमुदित है, अनेक प्रकार की मंगल-क्रीडा कर रहे हैं। गोपियाँ एक-दूसरी को हल्दी, अक्षत, दूर्वा और दही लेकर तिलक लगा रही हैं। (आज) कोई किसी को भी परवा नहीं करता है, कोई गायों को खिला रहे हैं, कोई ‘हेरी-हेरी’ कहकर पुकारते हैं, कोई गाते हैं, कोई दौड़कर दूसरे को भेंट रहे हैं-क्या वृद्ध, क्या युवक, क्या बालक और क्या तरुण-सभी व्रज के लोग श्रीकृष्णजन्म से प्रेम-सागर में ही मग्न क्रीड़ा कर रहे हैं। प्रभु मुकुन्द के जन्मोपलक्ष्य में गोपों में होनेवाले नये-नये क्रीडा-कौतुक हो रहे हैं। व्रज की यह सम्पत्ति देखकर सूरदास प्रफुल्लित हो रहे हैं।
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