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श्रीकृष्ण बाल माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग रामकली(218) (श्यामसुन्दर बोले-) ‘मैया! मैंने मक्खन नहीं खाया है। ये सब सखा मिलकर मेरी हँसी कराने पर उतारू हैं, इन्होंने उसे मेरे (ही) मुख में लिपटा दिया। तू ही देख! बर्तन तो छींके पर रखकर ऊँचाई पर लटकाये हुए थे, मैं कहता हूँ कि अपने नन्हें हाथों से मैंने उन्हें कैसे पा लिया?’ यों कहकर मुख में लगा दही मोहन ने पोंछ डाला तथा एक चतुरता की कि (मक्खन भरा) दोना पीछे छिपा दिया। माता यशोदा ने (पुत्र की बात सुनकर) छड़ी रख दी और मुसकराकर श्यामसुन्दर को गले लगा लिया। सूदासजी कहते हैं कि प्रभु ने अपने बाल-विनोद के आनन्द से माता के मन को मोहित कर लिया, (इस बालक्रीड़ा तथा माता से डरने में) उन्होंने भक्ति का प्रताप दिखलाया। श्रीयशोदाजी को यह (श्याम के बाल-विनोद का) आनन्द मिल रहा है, उसे तो शंकरजी और ब्रह्माजी (भी) नहीं पा सके। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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