विषय सूची
श्रीकृष्ण बाल माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग आसावरी(70) आनन्द और प्रेम से उमंग से भरी यशोदाजी खड़ी होकर (गोद में लेकर) गोपाल को खेला रही हैं। कभी वे उछलते हैं, कभी किलकारी मारते हैं, जिससे मैया के चित्त में सुखसागर को अभिवर्धित करते हैं। माता ताली बजाती है और अनुपम राग से लोरी गाकर दुलार करती है। कभी अपने पल्लव के समान कोमल हाथ पकड़ाकर आँगन में चलाती है। शिव, सनकादि ऋषि, शुकदेवादि परमहंस तथा ब्रह्मादि देवता ढूँढ़कर भी जिसका (जिनकी महिमा का) पार नहीं पाते, मैया उन्हीं को गोद में लेकर हिलाती (झुलाती) है और तोतली वाणी बुलवाती है। देवता, मनुष्य, किन्नर तथा मुनिगण-सब (इस लीला को देखकर) मुग्ध हो रहे हैं, सूर्य (लीला-दर्शन से मुग्ध होकर) अपने रथ को आगे नहीं चलाते हैं, व्रज की सभी युवतियाँ (इस लीलापर) मुग्ध हो रही हैं। सूरदास (इन्हीं श्याम का) सुयश गा रहा है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पद | पद संख्या |