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श्रीकृष्ण बाल माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग काफी(14) आज व्रजराज श्रीनन्दजी के घर मंगल बाद्य बज रहा है। गोकुल-नगर के सभी लोग आनन्दमग्न हैं। आनन्दपूर्ण श्रीयशोदाजी उमंग के मारे अपने-आपमें समाती नहीं हैं। गोपियाँ आनन्द से उल्लासित होकर मंगलगान कर रही हैं। सोने के थालों में दूर्वा, दही तथा गोरोचन लिये वे इस प्रकार चली जा रही हैं, मानो इन्द्रवधूटियों की पंक्ति एकत्र होकर बाहर निकल पड़ी हो। ग्वालबाल आनन्दित होकर अनेक विनोद-विचार करते हैं और बार-बार श्रीव्रजराज को दोनों भुजाओं में भरकर हृदय से लगा लेते हैं। गायें आनन्दमग्न होकर थनों से फेनयुक्त दूध गिरा रही हैं। उमंग से यमुनाजी के जल में ऊँची लहरें उछल रही हैं। जो वृक्ष पूरे सूख गये थे, उनमें भी पत्ते अंकुरित हो गये हैं। वन की लताएँ प्रफुल्लित होकर कलियों की राशि बन गयी हैं। ब्राह्मण, सूत, मागध तथा याचकवृन्द आनन्दित होकर सभी उमंगपूर्वक श्रीहरि के हित के लिये आशीर्वाद दे रहे हैं। आनन्दमग्न सभी देवता वस्त्राभूषण पहिनकर पुष्पसंचित विमानों पर बैठै आकाश में छाये (फैले) हुए हैं। सूरदास के स्वामी गोकुल में प्रकट हो गये हैं, इससे सत्पुरुषों को प्रसन्नता हो रही है और दुष्टों के हृदय (भय से) धड़कने लगे हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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