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श्रीकृष्ण बाल माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग बिलावल(36) सौभाग्यशालिनी श्रीयशोदाजी श्रीहरि को अपना पुत्र समझती हैं। (वात्सल्यप्रेम करती हुई) उनके मुख से अपना मुख सटाकर बातें करती हैं। श्यामसुन्दर लड़कपर ठान लेते है। (हाथ से मैया की नाक पकड़ लेते हैं) (वह कहती हैं-) ‘मुझ कंगालिनी का धन यह मनमोहन किलकता (प्रसन्न) रहे। लाल! तेरे इस प्रकार देखने तथा तेरी छटापर मैं बहिहारी हूँ।’ माताकी लटकती हुई बेसरपर मोहन एकटक दृष्टि लगाये हैं, कभी ओठ फड़काते हुए मुख उठाकर मन-ही-मन मुदित होते हैं। व्रजरानी यह कहकर कि ‘लाल! मैं तुझपर न्योछावर हूँ, हर्षित होकर प्रेम से उठकर हृदय से लगा देती हैं। सूरदास श्रीनन्दनन्दन की इस शिशुलीला पर बलिहारी जाता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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