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श्रीकृष्ण बाल माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग बिलावल(64) घनश्याम चलते हुए अत्यन्त शोभित होते हैं, सुन्दर मनोहारी पैंजनी प्रत्येक पद रखने के साथ बज रही है। आँगन में कन्हाई डगमगाते हुए चलते हैं, उनकी इस क्रीड़ा को देवता, मुनि तथा सभी मनुष्य आनन्दमग्न हो रहे हैं। माता यशोदा को अत्यन्त आनन्द हो रहा है, वे हाथ से मोहन की अँगुली पकड़े साथ-साथ घूम रही हैं, मानो बछड़े के प्रेम से गाय ने तृण चरना छोड़ दिया है। उनका हृद प्रेम से पिघल गया है और स्तनों से दूध टपक रहा है। मोहन के कपोलों पर चंचल कुंडल शोभा दे रहे हैं, भौंहों तक सुन्दर बालों की लटें लटक रही हैं। बालगोपालरूप से व्रजराज नन्दजी के भवन में क्रीड़ा करते श्यामसुन्दर को सूरदास देख रहा है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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