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श्रीकृष्ण बाल माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग सोरठ(257) (बलरामजी कहते हैं-) ‘श्यामसुन्दर को तूने इतना त्रस्त क्यों कर दिया? अरी मैया! सुन, मेरे भाई ने (अन्ततः) कितना गोरस नष्ट किया था जिसके कारण तूने रस्सी से इसके हाथ कसकर बाँध दिये और सटासट छडी मार दी? सूने घर में, जब नन्दबाबा नहीं थे, तभी तू इस प्रकार मोहन को डाँट सकी। कोई दूसरा श्याम को तनिक छूकर तो देखे, उसे मैं मार ही डालूँ, पर तुझे क्या कहूँ। तू माता है इसलिये तू जो कुछ करे वही बात सच्ची (ठीक) है (तुझपर मेरा कोई वश नहीं)।’ खड़े-खड़े बलराम ये सब बातें कर रहे हैं-‘तुझे मक्खन प्यारा है। जो पूरे व्रज का प्यारा है, जिसपर मुझे भी गर्व है, उसे तू छोड़ती क्यों नहीं? तूने कन्हाई को जकड़कर बाँध रखा है, पर यह व्रज किसका है? मक्खन और दही किसका है?’ (श्याम का ही तो है।) सूरदासजी कहते हैं कि बलरामजी की बात सुनकर माता ने उन्हें (अलग बात करने का) संकेत किया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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