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श्रीकृष्ण बाल माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग बिहागरौ(319) श्रीनन्दजी देख रहे हैं कि कन्हाई गाढ़ी निद्रा में सो रहे हैं। ‘आज यह वन में भूखा ही गया था।’ यह कह-कहकर (अपने लाल का) मुख देखते हैं। ‘ये दोनों भाई अपनी ही हठ करनेवाले हैं, दूसरे किसी का कहना नहीं मानते।’ (यह कहते हुए व्रजराज) बार-बार हाथ से (पुत्रों का) शरीर पोंछते (सहलाते) हैं, प्रेम की अत्यन्त पीड़ा उन्हें हो रही है। जहाँ श्याम-बलराम सो रहे थे, वहीं अपनी भी शय्या उन्होंने मँगा ली। सूरदासजी कहते हैं कि (आज) व्रजराज मेरे स्वामी के पास ही सोये, श्रीनन्दरानी भी (वहाँ) पुत्रों के साथ ही सोयीं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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