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श्रीकृष्ण बाल माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग बिहागरौ(120) (माता कहती हैं-) लाल! तुम्हारा मुख देखकर चन्द्रमा अत्यन्त डर रहा है। श्याम! तुम पानी में हाथ डालकर उसे ढूँढ़ना चाहते हो, इससे वह चोर की भाँति भागकर पाताल चला गया। वह (आकाश का) चन्द्रमा तो किसी भी प्रकार आता नहीं और यह जो जल में था, उसने बुद्धि से कुछ ऐसी बात सोच ली कि तुम्हारे मुख को देखकर इस चन्द्रमा की बुद्धि शंकित हो गयी। उसने अपने मन में तुम्हारे नेत्रों को कमल तथा कुण्डलों को (सूर्य का) प्रकाश समझा; इसलिये श्यामसुन्दर, सुनो! चन्द्रमा तुमसे डर रहा है और यही कहताहै कि मैं तुम्हारी शरण मे हूँ। (मुझे छोड़ दो।) सूरदासजी कहते हैं कि (इतना समझाने से भी प्रभु माने नहीं) श्यामसुन्दर मचलते हुए ही सो गये। माता ने उन्हें हृदय से लगा लिया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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