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श्रीकृष्ण बाल माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग गौरी(310) बलराम और श्याम-दोनों भाई वन से आ गये। हर्षित होकर मैया यशोदा तथा माता रोहिणी ने उन्हें गले लगाया। (वे बोलीं-) ‘आज देर क्यों कर दी? तुम्हारे कमलमुख तो सूख रहे हैं। आज दोनों भाई खाली पेट गये थे, कलेऊ भी नहीं कर पाये थे। तुम जाकर देखो तो क्या भोजन बना है। (यह कहकर यशोदाजी ने ) रोहिणी जी को तुरंत भेज दिया-मैं दोनों को स्नान कराये देती हूँ, तुम अत्यन्त शीघ्रता करो।’ (माता ने) छड़ी ली, हाथ में वंशी ले ली, बलरामजी ने सींग दे दिया, नीलाम्बर और पीताम्बर लेकर अपने प्राणों के समान सँभालकर मैया उनको रखती हैं। उन्होंने मुकुट उतारकर घर के भीतर ले जाकर रख दिया, सूदासजी कहते हैं कि श्यामसुन्दन की माता उनके गले से वनमाला भी उतार रही हैं और अब शरीर में लगी (गेरू, खड़िया आदि) धातुएँ पोंछ रही हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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