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श्रीकृष्ण बाल माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग सारंग(268) व्रज की गोपियाँ श्यामसुन्दर को हृदय से लगा रही हैं। बार-बार उनके सुकुमार शरीर को देखकर हाथ जोड़कर दैव को मनाती हैं (कि यह सकुशल रहे)। ‘बड़े विकट वृक्षों के नीचे पड़कर ये कैसे बचे?’ यह सोचकर मुख चूमती हैं तथा यह कहते हुए पश्चाताप करती हैं कि-‘जिसके लिये हम उलाहना लेकर आती थीं, उस सुख का फल पूर्णरूप में हम पा रही हैं। व्रजरानी! सुनो, तुम इन्हें (इतने सुकुमार को) बाँधती हो?’ (यह कहकर) हाथ पकड़कर बन्धन के चिन्ह (रस्सी के निशान) दिखलाती हैं। सूरदासजी कहते हैं कि मेरे स्वामी क्रीड़ा करने में अत्यन्त चतुर हैं (उन्होंने अपनी इस क्रीड़ा से सबको मोहित कर लिया है) गोपियाँ हर्षित होकर उन्हें हृदय से लिपटा रही हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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