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श्रीकृष्ण बाल माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग कान्हरू(272) (श्यामसुन्दर गोपों से कहते हैं-) ‘मैं गाय दुहूँगा, मुझे दुहना सिखला दो। दोहनी घटुनों में कैसे पकड़ते हो? बछड़े को लाकर थन से कैसे लगाते हो? नोई (पैर बाँधने की रस्सी) लेकर (गाय के पिछले दोनों) पैरों को कैसे बाँधते हो? गाय को ही लाकर कैसे (उछलने-कूदने से) अटकाये (रोके) रहते हो? दूध की धार (बर्तन में) शब्द कैसे करती है, तुमलोग जो कुछ करते हो, वह सारा ढंग मुझे बतलाओ।’ सूरदासजी कहते हैं कि श्यामसुन्दर से गोपलोग कह रहे हैं-‘कन्हाई! अब एकदम संध्या हो गयी है, कहीं तुम गायों से चोट लगा लोगे; गाय दुहना है तो सबेरे ही उठकर आ जाना।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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