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श्रीकृष्ण बाल माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग बिलावल(62) श्रीनन्दजी अपने लाल की अँगुली पकड़कर उन्हें चलना सिखला रहे हैं। (श्याम) लड़खड़ाकर गिर पड़ते हैं, तब हाथ का सहारा देकर उन्हें उठाते हैं। बार-बार श्याम से कुछ कहकर उनसे भी कुछ बुलवाते हैं। मोहन के (मुख में) दोनों ओर ऊपर-नीचे दो-दो दँतुलियाँ (छोटे-दाँत) निकल आयी हैं, इससे उनका मुख अत्यन्त शोभित हो रहा है। कभी कन्हाई श्रीनन्दजी का हाथ छोड़कर दो पद चलता है, कभी पृथ्वी पर बैठकर मन-ही-मन कुछ गाता है। कभी मुड़कर घुटनों के बल भागता है घर के भीतर की ओर चल पड़ता है। सूरदासजी कहते हैं कि श्यामसुन्दर का मुख देख-देखकर व्रजराज के हृदय में आनन्द बढ़ता जाता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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