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श्रीकृष्ण बाल माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग सारंग(226) (माता कहती हैं-) ‘आज तुझे बाँध (ही) दूँगी, देखती हूँ कौन खोलता है। मेरे साथ बहुत ऊधम तूने कियां’ यह कहकर हाथ पकड़कर (उसे) रस्सी के द्वारा ऊखल से बाँध रही हैं। माता को अत्यन्त क्रोधित देखकर मोहन ने अपने को बँधवा लिया और माता के मुख की ओर देखकर आँखों से आँसू ढुलकाने लगे। यह सुनकर (कि मामा ने श्याम को बाँध दिया) व्रज की सब युवतियाँ दौड़ी आयीं और कहने लगीं-‘अब कन्हाई को छोड़ क्यों नहीं देती!’ (किंतु) यशोदाजी तो ऊखल से उन्हें बाँधकर मारने के लिये हाथ से छड़ी तोड़ रही हैं। छड़ी देखकर गोपियों को (अपने उलाहना देने का) बड़ा पश्चात्ताप हुआ (श्याम के पीटे जाने की सम्भावना से ही व्याकुल होकर उन्होंने जहाँ-तहाँ अपना मुख छिपा लिया)। सूरदासजी कहते हैं-(वे सब बोलीं-) ‘व्रजरानी! ऐसा तुम्हें नहीं करना चाहिये कि थोड़े-से मक्खन और दही के लिये तुमने, पुत्र को बाँध दिया। श्यामसुन्दर को तुमने बहुत त्रास दिया, यह तो भोलेपन के कारण हमलोगों से भूल हो गयी (जो उलाहना दिया)।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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