विषय सूची
श्रीकृष्ण बाल माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग गौरी(179) वह गोपी अपने मन में प्रफुल्लित हुई घूर रही है। सखियाँ उससे अपास में यह बात पूछती हैं-‘तूने क्या कहीं कुछ पड़ा माल पा लिया है? तेरा रोम-राम पुलकित है, कण्ठ गद्गद हो रहा है, जिसके कारण मुख से बोला नहीं जाता ऐसा क्या है (जिससे तू इतनी प्रसन्न है)? अरी सखी! वह बात हमको क्यों नहीं सुनाती? हमारा शरीर अवश्य अलग-अलग है, परंतु प्राण तो एक ही हैं, हम-तुम तो एक ही हैं (फिर हमसे क्यों छिपाती हो)? सूरदासजी कहते हैं कि तब उसे गोपी ने सखियों से कहा-‘मैंने एक अनुपम रूप देखा है।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पद | पद संख्या |