बहुत नारि सुहाग-सुंदरि और घोष कुमारि।
सजन-प्रीतम-नाम लै-लै, दै परसपर गारि।।
अनँद अतिसै भयौ घर-घर, नृत्य ठावँहिं ठावँ।
नंद-द्वारैं भेंट लै-लै उमह्यौ गोकुल गावँ।।
चौक चंदन लीपि कै, धरि आरती संजोइ।
कहति घोष-कुमारि, ऐसौ अनंद जौ नित होइ।।
द्वार सथिया देति स्यामा, सात सींक बनाइ।
नव किसोरी मुदित है-है गहति जसुदा-पाइ।।
करि अलिंगन गोपिका, पहिरैं अभूषन-चीर।
गाइ-बच्छ सँवारि ल्याए, भई ग्वारनि भीर।।
मुदित मंगल सहित लीला करैं गोपी-ग्वाल।
हरद, अच्छत, दूब, दधि लै, तिलक करैं ब्रजबाल।।
एक एक न गनत काहूँ, इक खिलावत गाइ।
एक हेरी देहिं, गावहिं, एक भेंटहिं धाइ।।
एक बिरध-किसोर-बालक, एक जोबन जोग।
कृष्न-जन्म सु प्रेम-सागर, क्रीड़ैं सब ब्रज-लोग।।
प्रभु मुकुंद कै हेत नूतन होहिं घोष-बिलास।
देखि ब्रज की संपदा कौं, फूलै सूरदास।।