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श्रीकृष्ण बाल माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग नट-नरायन(302) श्रीकृष्णचन्द्र वृन्दावन में गायें चरा रहे हैं और सब गोपसखाओं को साथ लेकर आनन्द की सृष्टि करते हुए खेल रह हैं। कोई गाता है, कोई वंशी बजाता है, कोई सींग बजाता है और कोई बाँस की नली ही बजाता है। व्रज के बालकों की सेना एकत्र हो गयी है; उनमें कोई नाचता है, कोई ताल देकर समपर तान तोड़ता है। जहाँ त्रिविध (शीतल, मन्द, सुगन्ध) पवन रात-दिन चलता है और सुन्दर घने कुन्ज ही निवासस्थान हैं, सूरदासजी कहते हैं-वहाँ (वृन्दावन में) श्यामसुन्दर अपने घर को भी भूलकर यह (क्रीड़ा का) सुख लेने आते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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