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श्रीकृष्ण बाल माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग रामकली(33) व्रज में जो आनन्द प्रत्येक घड़ी हो रहा है, वह आनन्द तीनों लोकों में नहीं है। यह गोप-नगरी धन्य है। आठों सिद्धियाँ और नवों निधियाँ द्वारपर यहाँ हाथ जोड़े खड़ी रहती हैं; क्योंकि शिव, सनकादि ऋषि तथा शुकदेवादि परमहंसों के लिये भी जिनका दर्शन दुर्लभ है, उन श्रीहरि ने यहाँ अवतार लिया है। परम सौभाग्यवती श्रीयशोदाजी धन्य हैं, धन्य हैं, यह आज वेद भी सत्य मानते हैं (इसपर उन्होंने हस्ताक्षर कर दिया है); क्योंकि सूरदास केऐसे महिमामय प्रभु को उन्होंने गोद में ले लिया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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