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श्रीकृष्ण बाल माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग गौरी(137) (श्यामसुन्दर कहते हैं-) ‘मैया! दाऊ दादा ने मुझे बहुत चिढ़ाया है। मुझसे कहते हैं-‘तू मोल लिया हुआ है, यशोदा मैया ने भला, तुझे कब उत्पन्न किया।’ क्या करूँ, इसी क्रोध के मारे मैं खेलने नहीं जाता। वे बार-बार कहते हैं-‘तेरी माता कौन है? तेरे पिता कौन है? नन्दबाबा तो गोरे हैं, यशोदा मैया भी गोरी हैं, तू साँवले अंगवाला कैसे है?’ चुटकी देकर (फुसलाकर) ग्वाल-बाल मुझे नचाते हैं, फिर सब हँसते और मुसकराते हैं। तूने तो मुझे ही मारना सीखा है, दाऊ दादा को कभी डाँटती भी नहीं।’ सूरदासजी कहते हैं-मोहन के मुख से क्रोधभरी बातें बार-बार सुनकर यशोदाजी (मन-ही-मन) प्रसन्न हो रही हैं। (वे कहती हैं’) ’कन्हाई’! सुनो, बलराम तो चुगलखोर है, वह जन्म से ही धूर्त है; श्यामसुन्दर मुझे गोधन (गायों) की शपथ, मैं तुम्हारी माता हूँ और तुम मेरे पुत्र हो।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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