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श्रीकृष्ण बाल माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग सारंग(161) (सखाओं ने कहा-) ‘चतुर शिरोमणि श्यामसुन्दर! सुनो। यहाँ तो घर पास है, ग्राम के बाहर मैदान में खेलते बनेगा (खेलने की स्वच्छन्दता रहेगी)।’ कन्हाई और श्रीबलराम-ये दोनों भाई जिनकी भुजाएँ बलवान् थीं और जो स्वयं भी अत्यन्त शक्तिमान थे, एक दल के प्रमुख हो गये। सुबल, श्रीदामा और सुदामा दूसरी ओर ओ गये। गोपबालकों के समूह के दूसरे सखाओं का भी बँटवारा करा लिया। श्रीनन्दनन्दन बड़ी उमंग में भरकर व्रज की गलियों में खेलते हुए (ग्राम के बाहर) चल पड़े। (बाहर जाकर) गेंद पृथ्वी पर डाल दिया और उसे लुढ़काते हुए ले चले। सब अपना-अपना अवसर देखते थे, खेल भली प्रकार जम गया। श्यामसुन्दर ने देखा कि सखा जीत रहे हैं, तब कुछ मनमानी करने लगे। सूरदासजी कहते हैं कि (उनकी मनमानी देखकर) सुदामा ने कहा-‘ऐसा (बेईमानी का) खेल कौन खेले।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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