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श्रीकृष्ण बाल माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग मलार(211) (गोपी ने कहा-) ‘सखी व्रजरानी! तुम तो बड़ी कंजूस हो। दैव ने बहुत अधिक दूध-दही तुम्हें दिया है, उसे भी पुत्र से छिपाकर रखती हो। सखी! तुम्हारे बहुत लड़के तो हैं नहीं, अकेला कुँअर कन्हैया ही तो है। वह भी तो घर-घर घूमता रहता है और चोरी करके मक्खन खाता है। बुढ़ापे की अवस्था में समस्त पुण्यों का फल पूरा (प्रकट) होनेपर तो यह (कृष्णरूपी) बहुमूल्य निधि तुमने पायी है, अब उसके भी खाने-पीने में चतुरता (कतर-ब्योंत) क्यों करती हो? सूरदासजी कहते हैं कि श्रीयशोदाजी ने (यह बात सुनकर) श्रीनन्दजी को सुनाकर यह बात कही-‘इस चतुर नागरी की बातें तो सुना, श्यासुन्दर की चोरी का बहाना लेकर यह उसे देखने आयी है।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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