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राग जैतश्री
(माता ने कहा-) ‘मेरे लाल! दूर खेलने मत जाओ, वन में हौए आये है।’ तब कन्हाई हँसकर बोले-‘मैया! किसने हौओं को भेजा है?’ श्रीबलरामजी (छोटे भाई की) ये बातें सुनकर हँसते हैं और (मन-ही-मन) कहते हैं-‘अब आप डरने लगे हैं, किंतु पृथ्वी के नीचे के सातवें लोक पाताल में शेष की शय्या पर विराजते हैं, उस समय की सुधि भूल गये। (प्रलय के समय) जब शंखासुर (ब्रह्माजी से) चारों वेद ले गया और प्रलय के जल में छिप गया, उस समय जब आपने मत्स्यावतार लेकर उसे मारा, तब हौए कहाँ थे? देवत और दैत्यों के लिये आपने समुद्र-मन्थन किया और समुद्र में डूबते मन्दराचल को कच्छपरूप धारण करके पीठ पर लिये रहे, वहाँ भी हौए नहीं दिखलायी पड़े थे। जब दैत्य हिरण्याक्ष अपने मन में अत्यन्त गर्तित होकर युद्ध की अभिलाषा करने लगा, तब आपने उसे वाराहरूप धारण करके मारा और पृथ्वी को दाँतों के अगले भागपर उठा लिया। जब आपने भक्त प्रहृलाद की रक्षा के लिये भंयकर नृसिंहरूप में अवतार लिया और हिरण्यकशिपु का शरीर नखों से फाड़ डाला, वहाँ भी तो हौए नहीं दीखे थे। वामनावतार धारण करके आपने बलि से छल किया और पूरी पृथ्वी तीन ही पद में नाप ली; उस समय ब्रह्माजी ने आपके चरणों का दर्शन करके उन चरणों को धोकर चरणों के पसीने से मिला चरणोदक अपने कमण्डलु में रख लिया। जब (सहस्त्रार्जुन ने) बिना अपराध ही मुनि जगदग्नि को मार दिया, क्योंकि उसके द्वारा हरण की गयी कामधेनु आप लौटा लाये थे; तब आपने (उस परशुरामवतार में) इक्कीस बार पृथ्वी को क्षत्रियहीन कर दिया; वहाँ भी हौए तो नहीं दीखे थे! जब आपने रामावतार लेकर दस मस्तक और बीस भुजावाले रावण को मारा और जब लंका को जलाकर भस्म कर दिया, तब भी वहाँ हौए नहीं दीख पड़े थे। भक्तों की रक्षा के लिये और असुरों को मारकर नष्ट कर देने के लिये आपने यह अवतार लिया है, (अब यहाँ यह भय का नाटक क्यों करते हैं?) सूरदासजी कहते हैं कि मेरे स्वामी की यह लीला है, जिसका वेद भी नित्यप्रति ‘नेति-नेति’ कहकर (पार नहीं, पार नहीं-इस प्रकार) वर्णन करते हैं।
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