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श्रीकृष्ण बाल माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग सारंगशः घुटनों, जंघा, कमर, कण्ठतक बढ़ता जब नाकतक आ गया, तब श्यामसुन्दर को दोनों हाथों में उठा लिया। (उसी समय श्रीकृष्णचन्द्र ने) चरण बढ़ाकर यमुना का स्पर्श कर दिया, इससे उन्होंने इतना जल घटा दिया कि वह केवल पैर के तलवेतक ही रह गया। शेषजी अपने सहस्त्र फणों से ऊपर छाया किये चल रहे थे, इस प्रकार (शीघ्रतापूर्वक वसुदेवजी) गोकुल को दौड़े। उन्होंने मन में कोई शंका-संदेह नहीं किया, सीधे नन्दभवन में जा पहुँचे। (वहाँ यशोदाजी की गोद में कन्यारूप से) सोयी योगमाया को देखकर वसुदेवजी ने गोद में उठा लिया। उसे लेकर वसुदेवजी मथुरा आ गये। उन्होंने पूरे नगर में यह बात प्रकट की कि देवकी के गर्भ से पुत्री उत्पन्न हुई है; किन्तु राजा कंस ने इस बात का विश्वास नहीं किया। (कंस के द्वारा) पत्थर पर पटकते समय (उसकी) दोनों भुजाओं पर चरण-प्रहार करके वह आकाश में चली गयी। आकाश से वह देवीरूप में बोली-‘कंस! तेरी मृत्यु पास आ गयी है। जैसे मीन जाल में खेलते हुए कुछ न समझते हों और उन्हें अपना काल न दीखता हो, कंस! तू वैसा ही हो रहा है। तेरे काल श्रीयादवनाथ श्रीकृष्ण तो व्रज में उत्पन्न हो गये हैं।’ यह सुनकर कंस ने देवकी के आगे उनके चरणों पर मस्तक रख दिया (और बोला-) ‘मैंने तुम्हारे बालक मारकर बड़ा अपराध किया; किन्तु जिसके भाग्य में जो लिखा है, वह मिटाया नहीं जा सकता (उन बालकों के भाग्य में मेंरे हाथों मरना ही लिखा था, इसमें मेरा क्या दोष?) फिर वह अपने सहायकों को बुलाकर उनकी सम्मति पूछने लगा कि मेरे शत्रु ने किसके घर जन्म लिया है।’ (इस चिन्ता में) रात्रि के चारों प्रहर सुखदायी शय्या पर पड़े रहने पर भी उसे तनिक भी निद्रा नहीं आयी थी। (उधर गोकुल में) जब श्रीनन्दरानी जागीं तब उन्होंने पुत्र का मुख देखा-(पुत्रोत्पत्ति की सूचना के लिये) आनन्दपूर्वक तुरही बजवायी। सोने के कलश सजाये गये, हवन तथा ब्राह्मणों का पूजन हुआ, भवन चन्दन से लीपे गये, गोप अनेक रंगों के वस्त्र पहिनकर सज गये, गोपियाँ एकत्र होकर मंगल-गान करने लगीं। देवता आकाश में नाना प्रकार के पुष्पों की वर्षा करने लगे, पूरा गोकुल पुष्पों से आच्छादित हो गया। प्रेममग्न सभी नर-नारी आनन्द से भरे अनेक प्रकार की क्रीड़ा करने लगे। सभी नारियाँ अत्यन्त प्रेम-विभोर होकर अभयदुन्दुभी बजाते यशोदाजी को (प्रेमभरी) गाली गाने लगीं। श्रीनन्दबाबा प्रमुदित मन नाचने लगे, गोपगण ताली बजाने लगे। सूरदासजी कहते हैं कि मथुरा के गर्व का नाश करनेवाले मेरे प्रभु गोकुल में प्रकट हो गये हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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