श्रीकृष्णांक
श्रीकृष्ण के विराट-स्वरूप
भगवान श्रीकृष्ण पूर्ण ब्रह्म सच्चिदानन्दघन परमात्मा थे, इसमें किसी प्रकार का भी संदेह नहीं है। जिन भाग्यवानों ने श्रीमद्भागवत, महाभारत, हरिवंश आदि ग्रन्थों का अध्ययन किया है, उन्हे इस तत्त्व पर शंका करने का कोई कारण नहीं है। भगवान की विविध लीलाओं में विराट-स्वरूप दर्शन भी अलौकिक लीला है। आपने प्रधान रूप से चार बार अपना विराट-स्वरूप दिखलाया- 1- व्रज में माता यशोदा को, 2- कौरवों की राजसभा में, 3- युद्धक्षेत्र में अर्जुन को और 4- द्वारका के मार्ग में महर्षि उन्तंग। चारों ही स्थलों पर भगवान की लीला का रहस्य बड़ा ही विलक्षण है। यहाँ संक्षेप में चारों प्रसंगों का वर्णन किया जाता है। जो विस्तार से देखकर आनन्द लूटना चाहते हैं उन्हें तो श्रीमद्भागवत, श्रीगीता और श्रीमहाभारत में ही ये कथाएँ पढ़नी चाहिये। 1. भगवान श्रीकृष्ण अपने बालसखाओं के साथ खेल रहे थे, खेलते-खेलते मिट्टी खा गये। श्रीदाऊजी आदि बालकों ने माता यशोदा के पास जाकर कहा कि ‘देख, कृष्ण मिट्टी खा गया है’। यशोदाजी ने आकर श्यामसुन्दर का हाथ पकड़ लिया और डाँटकर कहा कि ‘क्यों रे ढीठ, तूने छिपकर क्यों मिट्टी खायी’ ? श्रीकृष्ण ने रोते हुए से कहा ’मैया ! मैंने मिट्टी नहीं खायी, ये लोग झूठ-मूठ मेरा नाम लगाते हैं, विश्वास नहीं है तो मेरा मुँह देख ले।’ इतना कहकर भगवान ने ज्यों ही मुख फैलाया कि यशोदा तो बेचारी हक्की-बक्की रह गयी। उसने देखा श्रीकृष्ण के मुख में सभी चराचर जीव, आकाश, दशों दिशाएँ, पहाड़, द्वीप, समुद्र, वायु, अग्नि, सूर्य, चन्द्रमा, तारा, इन्द्रियों के अधिष्ठाता देवगण आदि सारा विश्व भरा है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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