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श्रीकृष्णांक
श्रीकृष्ण और महात्मा जी का अनासक्ति योग
भगवान श्रीकृष्ण की श्रीमद्भगवद्गीता बहुत ही महत्त्वपूर्ण और अद्भुत ग्रन्थ है। हिन्दुओं के प्रत्येक आस्तिक सम्प्रदाय ने उसका आश्रय लिया है, सबने अपने मतानुकूल उस पर टीका-टिप्पणियाँ की हैं। आस्तिक हिन्दुओं का वह सर्वस्व है, गीता के सम्बन्ध में कहा गया है- गीत सुगीता कर्तव्या किमन्यै: शास्त्रविस्तरै:। भगवद्भक्त हिन्दू की दृष्टि में इस पद्य का उत्तरार्ध बहुत महत्त्वपूर्ण है। गीता का उपादेयता में यह एक मुख्य हेतु है कि साक्षात भगवान श्रीकृष्ण के मुख से निकली है। ‘महाभारत’ जिसका कि गीता एक अंश है, ‘पन्चम वेद’ माना गया है। महाभारत का युद्ध एक ऐतिहासिक घटना है, हिन्दुओं का सदा से यही विश्वास है। महात्मा गाँधीजी ने अपने भक्तों के अनुरोध से- लोकानुग्रहकांक्षया ‘अनासक्तियोग’ नाम से गीता का अनुवाद किया है, महात्मा जी ‘अनासक्तियोग’ की प्रस्तावना लिखते हैं- गीता ज्ञान के प्रवर्तक भगवान श्रीकृष्ण के सम्बन्ध में महात्मा जी की धारणा है- ‘गीता के कृष्ण मूर्तिमान शुद्ध सम्पूर्ण ज्ञान हैं, परन्तु काल्पनिक हैं, केवल सम्पूर्ण कृष्ण काल्पनिक हैं, सम्पूर्णावतार का पीछे से आरोवण हुआ है।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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