विराट को अन्य पांडवों का परिचय प्राप्त होना

महाभारत विराट पर्व के गोहरण पर्व के अंतर्गत अध्याय 71 में अर्जुन का विराट को अन्य पांडवों का परिचय प्राप्त होने का वर्णन हुआ है[1]-

विराट का संवाद

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! विराट ने पूछा- यदि ये कुरुकुल के रत्न कुन्ती नन्दन राजा युधिष्ठिर हैं, तो इनमें कौन इनके भाई अर्जुन हैं? कौन महाबली भीम हैं? नकुल, सहदेव अथवा यशस्विनी द्रौपदी कौन है? जब से कुन्ती के पुत्र जूए में हार गये, तब से उनका कहीं भी पता नहीं लगा।

विराट को अन्य पांडवों का परिचय प्राप्त होना

अर्जुन बोले- महाराज! ये जो बल्लव नामधारी आपके रसोइये हैं, ये ही भयंकर वेग और पराक्रम वाले भीमसेन हैं। ये ही गन्धमादन पर्वत पर क्रोधवश नाम वाले राक्षसों को मारकर द्रौपदी के लिये दिव्य सौगन्धिक कमल ले आये थे। दुरात्मा कीचकों का संहार करने वाले गन्धर्व भी ये ही हैं। इनहोंने ही आपके अन्तःपुर में अनेक व्याघ्रों, भालुओं और वराहों का वध किया है। इन्होंने ही हिडिम्ब, बकासुर, किर्मीर और जटासुर को मारकर वन को सर्वथा निष्कण्टक और सुखमय बनाया था। और ये शत्रुओं को संताप देने वाले नकुल जो अब तक आपके यहाँ अश्वशाला के प्रबन्धक रहे हैं और ये सहदेव हैं, जो गौओं की सँभाल करते आये हैं। ये दोनों ( हमारी माता ) माद्री के पुत्र एवं महारथी वीर हैं। उत्तम श्रृंगार, सुन्दर वेष और आभूषणों से सुशोभित ये दोनों भाई बड़े ही रूपवान और यशस्वी हैं। भरतवंशियों में श्रेष्ठ ये नकुल-सहदेव युद्ध में सहस्रों महारथियों का सामना करने में समर्थ हैं। राजन! यह विकसित कमल दल के समान विशाल नेत्र, सुन्दर कटि प्रदेश और मनोहर मुस्कान वाली सैरन्ध्री ही महारानी द्रौपदी है, जिसके धर्म की रक्षा के लिय कीचकों का वध किया गया। महाराज! मैं ही अर्जुन हूँ। अवश्य मेरा नाम भी आपके कानों मे पड़ा होगा। मैं कुन्ती देवी का पुत्र हूँ। भीमसेन से छोटा और नकुल-सहदेव से बड़ा हूँ। राजन! हम लोगों ने बड़े सुख से आपके महल में अज्ञातवास का समय बिताया है। जैसे संतान गर्भावस्था में रही हो, उसी प्रकार हम भी यहाँ अज्ञातवास में रहे हैं।

वैशम्पायन जी कहते हैं - राजन! जब अर्जुन ने पाँचों पाण्डव वीरों का परिचय दे दिया, तब विराट कुमार उत्तर ने अर्जुन का पराक्रम बताया। साथ ही उनहोंने पाँचों पाण्डवों का एक-एक करके पुनः राजा को परिचय दिया।

उत्तर का संवाद

उत्तर बोले- पिता जी! विशुद्ध जाम्बूनद नामक सुवर्ण के समान जिनका गौर शरीर है, जो सबसे बड़े और सिंह के समान हृष्ट पुष्ट हैं, जिनकी नाक लंबी और बड़े बड़े नेत्र कुछ लालिमा लिये कानो तक फैले हुए हैं, ये ही कुरुकुल नरेश महाराज युधिष्ठिर हैं। और ये जो मतवाले गजराज की भाँति मसतानी चाल से चलने वाले हैं, तपाये हुए संवर्ण के समान जिनका विशुद्ध गौर शरीर है, जिनके कंधे मोटे और चैड़े हैं तथा भुजाएँ बड़ी बड़ी और भारी हैं, ये ही भीमसेन हैं। इन्हें अचछी तरह देखिये। इनके बगल में जो ये महान धनुर्धर श्याम वर्ण के तरुण वीर विराज रहे हैं, जो यूथपति गजराज के समान शोभा पाते हैं, जिनके कंधे सिंह के समान ऊँचे और चाल मतवाले हाथी के समान मस्तानी है, ये ही कमल दल के समान विशाल नेत्रों वाले वीरवर अर्जुन हैं।

महाराज युधिष्ठिर के समीप बैठे हुए वे इन्द्र और उपेन्द्र के सूान दोनों नरश्रेष्ठ माद्री के जुड़वें पुत्र नकुल-सहदेव हैं। सम्पूर्ण मानव-जगत में इनके रूप, बल और शील की समानता करने वाला दूसरा कोई नहीं है। इन दोनों के बगल में जो तेजस्विनी देवी मूर्तिमती गौरी के समान खड़ी हैं, जिनकी कान्ति नीलकमल की आभा को लज्जित कर रही है तथा जो देवताओं की भी देवी और साकार रूप में प्रकट हुई लक्ष्मी शोभा पा रही हैं, ये ही द्रुपद कुमारी महारानी कृष्णा हैं।

अर्जुन के प्रराक्रम का वर्णन

वैशम्पायन जी कहते हैं- राजन! इस प्रकार उन पाँचों कुन्ती पुत्र पाण्डवों का राजा को परिचय देकर विराट कुमार ने अर्जुन का पराक्रम बताना प्रारम्भ किया।

उत्तर ने कहा- पिता जी! ये ही वे देवपुत्र हैं, जो शत्रुओं का उसी प्रकार वध करते हैं, जैसे सिंह मृगों का। ये ही कौरव रथा राहियों की सेना में उन सब श्रेष्ठ महारथियों को घायल करते हुए निर्भय विचर रहे थे। युद्ध में इनके एक ही बाण से घायल होकर विकर्ण का विशाल गजराज, जो सोने की साँकल से सुशोभित था, धरती पर दोनों दाँत टेककर मर गया। इन्होंने ही गौअें की जीता और युद्ध में कौरवों को परास्त किया। इनके शंख की गम्भीर ध्वनि सुनकर मेरे तो कान बहरे हो गये थे।[2]

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत विराट पर्व अध्याय 71 श्लोक 1-12
  2. महाभारत विराट पर्व अध्याय 71 श्लोक 13-23

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पांडवप्रवेश पर्व
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