- महाभारत विराट पर्व के गोहरण पर्व के अंतर्गत अध्याय 55 में उत्तर का अर्जुन के रथ को कृपाचार्य के पास लेने का वर्णन हुआ है[1]-
विषय सूची
उत्तर एवं अर्जुन का संवाद
वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! विराट के पुत्र कुमार उत्तर ने कौरव सेना को भागती और कुंती पुत्र अर्जुन को पुनः युद्ध के लिये डटा हुआ देखकर उनका अभिप्राय समझकर यों कहा- ‘जिष्णो! मुझ सारथि के साथ इस सुन्दर रथ पर बैथे हुए आप अब किस सेना की ओर जाना चाहते हैं? आप जहाँ के लिये आज्ञा दें, वहीं आपके साथ चलूँ।
अर्जुन बोले- उत्तर! जिनके लाल लाल घोड़े हैं, जिन शुभ स्वरूप महापुरुष को तुम बाघम्बर पहने देख रहे हो, जो अपने रथ पर नीले रंग की पताका फहराकर बैठे हुए हैं, वे कृपाचार्य जी हैं और यह उनकी श्रेष्ठ सेना है। मुझे इसी सेना के पास ले चलो। मैं इन दृढ़ धनुष वाले कृपाचार्य जी को शीघ्र अस्त्र चलाने की कला दिखलाऊँगा। जिनकी ध्वजा में सुन्दर सुवर्णमय कमण्डलु सुशोभित है, ये सम्पूर्ण शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ आचार्य द्रोण हैं। ये मेरे तथा अन्य सब शस्त्रधारियों के माननीय हैं। तुम इन परम प्रसन्न महावीर आचार्यपाद की रथ द्वारा प्रदक्षिणा करो। तुम इसी समय इन्हें आदर दो और युद्ध के लिये उद्यत हो रथ पर बैठे रहो। यह सनातन धर्म है। यदि आचार्य द्रोण पहले मेरे शरीर पर प्रहार करेंगे, तब मैं इनके ऊपर भी बाणों द्वारा आघात करूँगा। ऐसा करने पर इन्हें क्रोध नहीं होगा। इनके पास ही जिनकी ध्वजा के अग्रभाग में धनुष का चिह्न दिखायी देता है, ये आचार्य के ही योग्य पुत्र महारथी अश्वत्थामा हैं। ये भी मेरे तथा सम्पूर्ण शस्त्र धारियों के लिये माननीय हैं, अतः इनके रथ के समीप जाकर भी तुम बार बार लौट आना। यह जो रथियों की सेना में सोने के कवच धारण किये तीसरी कान देने योग्य ( बिना थकी-मांदी ) सेना के साथ विराजमान हैं, जिसकी ध्वजा के अग्र भाग में नाग का चिह्न है और सोने की पताका फहरा रही है, यह धृतराष्ट्र पुत्र श्रीमान राजा दुर्योधन हैं। वीर! शत्रुओं के रथ को तोड़ डालने वाले अपने इस रथ को तुम इसी के सम्मुख ले चलो। यह राजा शत्रुओं को मथ डालने वाला तथा युद्ध के लिये उन्मत्त रहने वाला है। यह शीघगता पूर्वक अस्त्र चलाने में आचार्य द्रोण के शिष्यों में प्रथम माना जाता है। इस युद्ध में आज मैं इसे शीघ्र अस्त्र चलाने की विपुल कला का दर्शन कराऊँगा। जिसकी ध्वजा के अग्र भाग पर हाथी या उसकी सांकल के चिह्न से युक्त पताका फहरा रही है, यह विकर्तन पुत्र कर्ण है। इससे तुम पहले ही परिचित हो चुके हो। इस दुरात्मा राधा पुत्र के रथ के निकट जाकर सावधान हो जाना। यह सदा युद्ध मे मेरे साथ स्पर्धा रखता है।
उत्तर का अर्जुन के रथ को कृपाचार्य के पास लेना
जो नीले रंग की पाँच के चिह्न से सुशोभित पताका वाले रथ पर बैठे हुए हैं, जिनका धनुष विशाल है, जिन्होंने हाथों में दस्ताने पहन रक्खे हैं, जिनका वह तारों और सूर्य के चिह्नों से विचित्र शोभा धारण करने वाला ध्वज फहरा रहा है, जिनके मस्तक पर श्वेत रंग का उज्ज्वल छत्र सुशोभित है, जो नाना प्रकार की ध्वजा पताकाओं से उपलक्षित रथियों की विशाल सेना के अग्रभाग में बादलों के आगे सूर्य की भाँति प्रकाशित हो रहे हैं, जिनके शरीर पर चन्द्रमा और सूर्य के समान चमकीला सोने का कवच और सुवर्णमय शिस्त्राण दिखायी देता है, वे रेष्ठ रथ पर विराजमान महापराक्रमी वीर पुरुष हम सबके पितामह शान्तनु नन्दन भीष्म हैं। ये राज्य लक्ष्मी से सम्पन्न होकर भी दुर्योधन के अधीन हो रहे हैं। इसलिये मेरे मन को संतप्त सा किये देते हैं। इनके पास सबसे पीछे चलना। ये मेरे मार्ग में विघ्नकारक नहीं होंगे। इनके साथ युद्ध करते समय सावधान होकर मेरे घोड़ों को सँभालना। राजन! अर्जुन की यह बात सुनकर विराट पुत्र उत्तर निर्भय एवं सावणान हो सव्यसाची धनंजय को उस स्थान पर ले गया, जहाँ कृपाचार्य उनसे युद्ध करने के लिये खड़े थे।[2]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
महाभारत विराट पर्व में उल्लेखित कथाएँ
पांडवप्रवेश पर्व
विराटनगर में अज्ञातवास करने हेतु पांडवों की गुप्त मंत्रणा
| अज्ञातवास हेतु युधिष्ठिर द्वारा अपने भावी कार्यक्रम का दिग्दर्शन
| भीमसेन और अर्जुन द्वारा अज्ञातवास हेतु अपने अनुकूल कार्यों का वर्णन
| नकुल, सहदेव और द्रौपदी द्वारा अज्ञातवास हेतु अपने कर्तव्यों का दिग्दर्शन
| धौम्य द्वारा पांडवों को राजा के यहाँ रहने का ढंग बताना
| पांडवों का श्मशान में शमी वृक्ष पर अपने अस्त्र-शस्त्र रखना
| युधिष्ठिर द्वारा दुर्गा देवी की स्तुति
| युधिष्ठिर का राजसभा में राजा विराट से मिलना
| युधिष्ठिर का विराट के यहाँ निवास पाना
| भीमसेन का विराट की सभा में प्रवेश और राजा द्वारा उनको आश्वासन
| द्रौपदी का सैरन्ध्री के वेश में रानी सुदेष्णा से वार्तालाप
| द्रौपदी का रानी सुदेष्णा के यहाँ निवास पाना
| सहदेव की विराट के यहाँ गौशाला में नियुक्ति
| अर्जुन की विराट के यहाँ नृत्य प्रशिक्षक के पद पर नियुक्ति
| नकुल का विराट के अश्वों की देखरेख में नियुक्त होना
समयपालन पर्व
भीमसेन द्वारा जीमूत नामक मल्ल का वध
कीचकवध पर्व
कीचक की द्रौपदी पर आसक्ति और प्रणय निवेदन
| द्रौपदी द्वारा कीचक को फटकारना
| सुदेष्णा का द्रौपदी को कीचक के यहाँ भेजना
| कीचक द्वारा द्रौपदी का अपमान
| द्रौपदी का भीमसेन के समीप जाना
| द्रौपदी का भीमसेन से अपना दु:ख प्रकट करना
| द्रौपदी का भीमसेन के सम्मुख विलाप
| द्रौपदी का भीमसेन से अपना दु:ख निवेदन करना
| भीमसेन और द्रौपदी का संवाद
| भीमसेन और कीचक का युद्ध
| भीमसेन द्वारा कीचक का वध
| उपकीचकों का सैरन्ध्री को बाँधकर श्मशानभूमि में ले जाना
| भीमसेन द्वारा उपकीचकों का वध
| द्रौपदी का विराट नगर में लौटकर आना
| द्रौपदी का बृहन्नला और सुदेष्णा से वार्तालाप
गोहरण पर्व
दुर्योधन को उसके गुप्तचरों द्वारा कीचकवध का वृत्तान्त सुनाना
| दुर्योधन का सभासदों से पांडवों का पता लगाने हेतु परामर्श
| द्रोणाचार्य की सम्मति
| युधिष्ठिर की महिमा कहते हुए भीष्म की पांडव अन्वेषण के विषय में सम्मति
| कृपाचार्य की सम्मति और दुर्योधन का निश्चय
| सुशर्मा का कौरवों के लिए प्रस्ताव
| त्रिगर्तों और कौरवों का मत्स्यदेश पर धावा
| पांडवों सहित विराट की सेना का युद्ध हेतु प्रस्थान
| मत्स्य तथा त्रिगर्त देश की सेनाओं का युद्ध
| सुशर्मा द्वारा विराट को बन्दी बनाना
| पांडवों द्वारा विराट को सुशर्मा से छुड़ाना
| युधिष्ठिर का अनुग्रह करके सुशर्मा को मुक्त करना
| विराट द्वारा पांडवों का सम्मान
| विराट नगर में राजा विराट की विजय घोषणा
| कौरवों द्वारा विराट की गौओं का अपहरण
| गोपाध्यक्ष का उत्तरकुमार को युद्ध हेतु उत्साह दिलाना
| उत्तर का अपने लिए सारथि ढूँढने का प्रस्ताव
| द्रौपदी द्वारा उत्तर से बृहन्नला को सारथि बनाने का सुझाव
| बृहन्नला के साथ उत्तरकुमार का रणभूमि को प्रस्थान
| कौरव सेना को देखकर उत्तरकुमार का भय
| अर्जुन का उत्तरकुमार को आश्वासन देकर रथ पर चढ़ाना
| द्रोणाचार्य द्वारा अर्जुन के अलौकिक पराक्रम की प्रशंसा
| अर्जुन का उत्तर को शमीवृक्ष से अस्त्र उतारने का आदेश
| उत्तर का शमीवृक्ष से पांडवों के दिव्य धनुष आदि उतारना
| उत्तर का बृहन्नला से पांडवों के अस्त्र-शस्त्र के विषय में प्रश्न करना
| बृहन्नला द्वारा उत्तर को पांडवों के आयुधों का परिचय कराना
| अर्जुन का उत्तरकुमार को अपना और अपने भाइयों का यथार्थ परिचय देना
| अर्जुन द्वारा युद्ध की तैयारी तथा अस्त्र-शस्त्रों का स्मरण
| अर्जुन द्वारा उत्तरकुमार के भय का निवारण
| अर्जुन को ध्वज की प्राप्ति तथा उनके द्वारा शंखनाद
| द्रोणाचार्य का कौरवों से उत्पात-सूचक अपशकुनों का वर्णन
| दुर्योधन द्वारा युद्ध का निश्चय
| कर्ण की उक्ति
| कर्ण की आत्मप्रंशसापूर्ण अहंकारोक्ति
| कृपाचार्य का कर्ण को फटकारना और युद्ध हेतु अपना विचार बताना
| अश्वत्थामा के उद्गार
| भीष्म द्वारा सेना में शान्ति और एकता बनाये रखने की चेष्टा
| द्रोणाचार्य द्वारा दुर्योधन की रक्षा के प्रयत्न
| पितामह भीष्म की सम्मति
| अर्जुन का दुर्योधन की सेना पर आक्रमण और गौओं को लौटा लाना
| अर्जुन का कर्ण पर आक्रमण और विकर्ण की पराजय
| अर्जुन द्वारा शत्रुंतप और संग्रामजित का वध
| कर्ण और अर्जुन का युद्ध तथा कर्ण का पलायन
| अर्जुन द्वारा कौरव सेना का संहार
| उत्तर का अर्जुन के रथ को कृपाचार्य के पास लेना
| अर्जुन और कृपाचार्य का युद्ध देखने के लिए देवताओं का आगमन
| कृपाचार्य और अर्जुन का युद्ध
| कौरव सैनिकों द्वारा कृपाचार्य को युद्ध से हटा ले जाना
| अर्जुन का द्रोणाचार्य के साथ युद्ध
| द्रोणाचार्य का युद्ध से पलायन
| अर्जुन का अश्वत्थामा के साथ युद्ध
| अर्जुन और कर्ण का संवाद
| कर्ण का अर्जुन से हारकर भागना
| अर्जुन का उत्तरकुमार को आश्वासन
| अर्जुन से दु:शासन आदि की पराजय
| अर्जुन का सब योद्धाओं और महारथियों के साथ युद्ध
| अर्जुन द्वारा कौरव सेना के महारथियों की पराजय
| अर्जुन और भीष्म का अद्भुत युद्ध
| अर्जुन के साथ युद्ध में भीष्म का मूर्च्छित होना
| अर्जुन और दुर्योधन का युद्ध
| दुर्योधन का विकर्ण आदि योद्धाओं सहित रणभूमि से भागना
| अर्जुन द्वारा समस्त कौरव दल की पराजय
| कौरवों का स्वदेश को प्रस्थान
| अर्जुन का विजयी होकर उत्तरकुमार के साथ राजधानी को प्रस्थान
| विराट की उत्तरकुमार के विषय में चिन्ता
| उत्तरकुमार का नगर में प्रवेश और प्रजा द्वारा उनका स्वागत
| विराट द्वारा युधिष्ठिर का तिरस्कार और क्षमा-प्रार्थना
| विराट का उत्तरकुमार से युद्ध का समाचार पूछना
| विराट और उत्तरकुमार की विजय के विषय में बातचीत
| अर्जुन का विराट को महाराज युधिष्ठिर का परिचय देना
| विराट को अन्य पांडवों का परिचय प्राप्त होना
| विराट का युधिष्ठिर को राज्य समर्पण और अर्जुन-उत्तरा विवाह का प्रस्ताव
| अर्जुन द्वारा उत्तरा को पुत्रवधू के रूप में ग्रहण करना
| अभिमन्यु और उत्तरा का विवाह
| विराट पर्व श्रवण की महिमा
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज