- महाभारत विराट पर्व के गोहरण पर्व के अंतर्गत अध्याय 36 में गोपाध्यक्ष का उउत्तर का अपने लिए सारथि ढूँढने का प्रस्ताव का वर्णन हुआ है[1]-
विषय सूची
उत्तर का संवाद
उत्तर बोला- गोपप्रवर! मेरा धनुष तो बहुत मजबूत है। यदि मेरे पास घोड़े हाँकने की कला में कुशल कोई सारथि होता, तो आज मैं अवश्य ही उन गौओं के पदचिह्नों का अनुसरण करता। इस समय मुझे ऐसे किसी मनुष्य का पता नहीं है, जो मेरा सारथि बन सके। मैं युद्ध के लिये प्रस्थान करूँगा, अतः शीघ्र मेरे लिये किसी योग्य सारथि की तलाश करो। पहले लगातार अट्ठाइस रात तक अथवा अनततः एक मास तक जो युद्ध हुआ था, उसमें मेरा सारथि मारा गया था।
उत्तर का अपने लिए सारथि ढूँढने का प्रस्ताव
अतः यदि घोड़े हाँकने की कला जानने वाले किसी दूसरे मनुष्य को भी पा जाऊँ, तो अभी बड़े वेग से जाकर ऊँची-ऊँची विशाल ध्वजा से विभूषित एवं हाथी, घोड़े तथा रथों से भरी हुई शत्रुओं की सेना में घुस जाऊँ ओर अपने आयुधों के प्रजाप से कौरवों को निर्वीर्य (पराक्रमशून्य) तथा परास्त करके सम्पूर्ण पशुओं को लौटा लाऊँ। जैसे वज्रधारी इन्द्र दानवों को भयभीत कर देते हैं, उसी प्रकार मैं दुर्योधन, शान्तनुनन्दन भीष्म, सूर्यपुत्र कर्ण, कृपाचार्य तथा पुत्र (अश्वत्थामा) सहित द्रोणाचार्य आदि महान धनुर्धरों को, जो यहाँ आये हैं, युद्ध में अत्यनत भय पहुँचाकर इसी मुहुर्त में अपने पशुओं को वापस ला सकता हूँ।। गोष्ठ को सूना पाकर कौरव लोग गोधन लिये जा रहे हैं। परंतु अब मैं यहाँ से क्या कर सकता हूँ ? जबकि वहाँ उस समय मैं मौजूद नहीं था। अच्छा, जब कौरव लोग यहाँ आ ही गये हैं, तब आज मेरा पराक्रम देख लें। फिर तो वे कहेंगे- ‘क्या यह साक्षात कुन्तीपुत्र अर्जुन ही हमें पीड़ा दे रहा है ?’
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
महाभारत विराट पर्व में उल्लेखित कथाएँ
पांडवप्रवेश पर्व
विराटनगर में अज्ञातवास करने हेतु पांडवों की गुप्त मंत्रणा
| अज्ञातवास हेतु युधिष्ठिर द्वारा अपने भावी कार्यक्रम का दिग्दर्शन
| भीमसेन और अर्जुन द्वारा अज्ञातवास हेतु अपने अनुकूल कार्यों का वर्णन
| नकुल, सहदेव और द्रौपदी द्वारा अज्ञातवास हेतु अपने कर्तव्यों का दिग्दर्शन
| धौम्य द्वारा पांडवों को राजा के यहाँ रहने का ढंग बताना
| पांडवों का श्मशान में शमी वृक्ष पर अपने अस्त्र-शस्त्र रखना
| युधिष्ठिर द्वारा दुर्गा देवी की स्तुति
| युधिष्ठिर का राजसभा में राजा विराट से मिलना
| युधिष्ठिर का विराट के यहाँ निवास पाना
| भीमसेन का विराट की सभा में प्रवेश और राजा द्वारा उनको आश्वासन
| द्रौपदी का सैरन्ध्री के वेश में रानी सुदेष्णा से वार्तालाप
| द्रौपदी का रानी सुदेष्णा के यहाँ निवास पाना
| सहदेव की विराट के यहाँ गौशाला में नियुक्ति
| अर्जुन की विराट के यहाँ नृत्य प्रशिक्षक के पद पर नियुक्ति
| नकुल का विराट के अश्वों की देखरेख में नियुक्त होना
समयपालन पर्व
भीमसेन द्वारा जीमूत नामक मल्ल का वध
कीचकवध पर्व
कीचक की द्रौपदी पर आसक्ति और प्रणय निवेदन
| द्रौपदी द्वारा कीचक को फटकारना
| सुदेष्णा का द्रौपदी को कीचक के यहाँ भेजना
| कीचक द्वारा द्रौपदी का अपमान
| द्रौपदी का भीमसेन के समीप जाना
| द्रौपदी का भीमसेन से अपना दु:ख प्रकट करना
| द्रौपदी का भीमसेन के सम्मुख विलाप
| द्रौपदी का भीमसेन से अपना दु:ख निवेदन करना
| भीमसेन और द्रौपदी का संवाद
| भीमसेन और कीचक का युद्ध
| भीमसेन द्वारा कीचक का वध
| उपकीचकों का सैरन्ध्री को बाँधकर श्मशानभूमि में ले जाना
| भीमसेन द्वारा उपकीचकों का वध
| द्रौपदी का विराट नगर में लौटकर आना
| द्रौपदी का बृहन्नला और सुदेष्णा से वार्तालाप
गोहरण पर्व
दुर्योधन को उसके गुप्तचरों द्वारा कीचकवध का वृत्तान्त सुनाना
| दुर्योधन का सभासदों से पांडवों का पता लगाने हेतु परामर्श
| द्रोणाचार्य की सम्मति
| युधिष्ठिर की महिमा कहते हुए भीष्म की पांडव अन्वेषण के विषय में सम्मति
| कृपाचार्य की सम्मति और दुर्योधन का निश्चय
| सुशर्मा का कौरवों के लिए प्रस्ताव
| त्रिगर्तों और कौरवों का मत्स्यदेश पर धावा
| पांडवों सहित विराट की सेना का युद्ध हेतु प्रस्थान
| मत्स्य तथा त्रिगर्त देश की सेनाओं का युद्ध
| सुशर्मा द्वारा विराट को बन्दी बनाना
| पांडवों द्वारा विराट को सुशर्मा से छुड़ाना
| युधिष्ठिर का अनुग्रह करके सुशर्मा को मुक्त करना
| विराट द्वारा पांडवों का सम्मान
| विराट नगर में राजा विराट की विजय घोषणा
| कौरवों द्वारा विराट की गौओं का अपहरण
| गोपाध्यक्ष का उत्तरकुमार को युद्ध हेतु उत्साह दिलाना
| उत्तर का अपने लिए सारथि ढूँढने का प्रस्ताव
| द्रौपदी द्वारा उत्तर से बृहन्नला को सारथि बनाने का सुझाव
| बृहन्नला के साथ उत्तरकुमार का रणभूमि को प्रस्थान
| कौरव सेना को देखकर उत्तरकुमार का भय
| अर्जुन का उत्तरकुमार को आश्वासन देकर रथ पर चढ़ाना
| द्रोणाचार्य द्वारा अर्जुन के अलौकिक पराक्रम की प्रशंसा
| अर्जुन का उत्तर को शमीवृक्ष से अस्त्र उतारने का आदेश
| उत्तर का शमीवृक्ष से पांडवों के दिव्य धनुष आदि उतारना
| उत्तर का बृहन्नला से पांडवों के अस्त्र-शस्त्र के विषय में प्रश्न करना
| बृहन्नला द्वारा उत्तर को पांडवों के आयुधों का परिचय कराना
| अर्जुन का उत्तरकुमार को अपना और अपने भाइयों का यथार्थ परिचय देना
| अर्जुन द्वारा युद्ध की तैयारी तथा अस्त्र-शस्त्रों का स्मरण
| अर्जुन द्वारा उत्तरकुमार के भय का निवारण
| अर्जुन को ध्वज की प्राप्ति तथा उनके द्वारा शंखनाद
| द्रोणाचार्य का कौरवों से उत्पात-सूचक अपशकुनों का वर्णन
| दुर्योधन द्वारा युद्ध का निश्चय
| कर्ण की उक्ति
| कर्ण की आत्मप्रंशसापूर्ण अहंकारोक्ति
| कृपाचार्य का कर्ण को फटकारना और युद्ध हेतु अपना विचार बताना
| अश्वत्थामा के उद्गार
| भीष्म द्वारा सेना में शान्ति और एकता बनाये रखने की चेष्टा
| द्रोणाचार्य द्वारा दुर्योधन की रक्षा के प्रयत्न
| पितामह भीष्म की सम्मति
| अर्जुन का दुर्योधन की सेना पर आक्रमण और गौओं को लौटा लाना
| अर्जुन का कर्ण पर आक्रमण और विकर्ण की पराजय
| अर्जुन द्वारा शत्रुंतप और संग्रामजित का वध
| कर्ण और अर्जुन का युद्ध तथा कर्ण का पलायन
| अर्जुन द्वारा कौरव सेना का संहार
| उत्तर का अर्जुन के रथ को कृपाचार्य के पास लेना
| अर्जुन और कृपाचार्य का युद्ध देखने के लिए देवताओं का आगमन
| कृपाचार्य और अर्जुन का युद्ध
| कौरव सैनिकों द्वारा कृपाचार्य को युद्ध से हटा ले जाना
| अर्जुन का द्रोणाचार्य के साथ युद्ध
| द्रोणाचार्य का युद्ध से पलायन
| अर्जुन का अश्वत्थामा के साथ युद्ध
| अर्जुन और कर्ण का संवाद
| कर्ण का अर्जुन से हारकर भागना
| अर्जुन का उत्तरकुमार को आश्वासन
| अर्जुन से दु:शासन आदि की पराजय
| अर्जुन का सब योद्धाओं और महारथियों के साथ युद्ध
| अर्जुन द्वारा कौरव सेना के महारथियों की पराजय
| अर्जुन और भीष्म का अद्भुत युद्ध
| अर्जुन के साथ युद्ध में भीष्म का मूर्च्छित होना
| अर्जुन और दुर्योधन का युद्ध
| दुर्योधन का विकर्ण आदि योद्धाओं सहित रणभूमि से भागना
| अर्जुन द्वारा समस्त कौरव दल की पराजय
| कौरवों का स्वदेश को प्रस्थान
| अर्जुन का विजयी होकर उत्तरकुमार के साथ राजधानी को प्रस्थान
| विराट की उत्तरकुमार के विषय में चिन्ता
| उत्तरकुमार का नगर में प्रवेश और प्रजा द्वारा उनका स्वागत
| विराट द्वारा युधिष्ठिर का तिरस्कार और क्षमा-प्रार्थना
| विराट का उत्तरकुमार से युद्ध का समाचार पूछना
| विराट और उत्तरकुमार की विजय के विषय में बातचीत
| अर्जुन का विराट को महाराज युधिष्ठिर का परिचय देना
| विराट को अन्य पांडवों का परिचय प्राप्त होना
| विराट का युधिष्ठिर को राज्य समर्पण और अर्जुन-उत्तरा विवाह का प्रस्ताव
| अर्जुन द्वारा उत्तरा को पुत्रवधू के रूप में ग्रहण करना
| अभिमन्यु और उत्तरा का विवाह
| विराट पर्व श्रवण की महिमा
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज