कर्ण की उक्ति

महाभारत विराट पर्व के गोहरण पर्व के अंतर्गत अध्याय 47 में कर्ण की उक्ति का वर्णन हुआ है। यहाँ वैशम्पायन जी ने जनमेजय से कर्ण की उक्ति की कथा कही है।[1]

कर्ण की उक्ति वर्णन

दुर्योधन की बात सुनकर राधा नन्दन कर्ण ने कहा- ‘राजन! आप आचार्य द्रोण को पीछे रखकर ऐसी नीति बनाइये कि विजय प्राप्त हो। ‘ये पाण्डवो का मत जानते हैं, इसीलिये यहाँ हमें डरा रहे हैं। और अर्जुन के प्रति इनका प्रेम अधिक मैं देखता हूँ। ‘तभी तो अर्जुन को आते देख ये उसकी प्रशंसा कर रहे हैं।[2] सेना मे भगदड़ न मच जाय, इसका खयाल रखते हुए तद्नुकूल नीति निर्धारित कीजिये। ‘[3]ये अर्जुन के घोड़ों की हिनहिनाहट सुनते ही घबरा उठेंगे। फिर तो सारी सेना विचलित हो जायगी। इस समय हम विदेश में हैं, बड़े भारी जंगल में पड़े हुए हैं, गर्मी की ऋतु हैं और हम शत्रु के वश में आ गये हैं; अतः ऐसी नीति से काम लें कि इनकी बातें सुनकर सैनिकों के मन में भ्रम न फैले। ‘आचार्य को सदा से ही पाण्डव अधिक प्रिय रहे हैं। उन स्वार्थियों ने अपना काम बनाने के लिये ही द्रोणाचार्य को आपके पास रख छोड़ा है। ये स्वयं भी ऐसी बातें कहते हैं, जिससे हमारे कथन की पुष्टि होती है।[1]

भला, घोड़ों की हिनहिनाहट सुनकर कौन किसी की प्रशंसा करने लग जाता है? घोड़े अपने स्थान पर हों या यात्रा करते हों, वे सदा ही हींसते रहते हैं[4] ‘हवा सदा चला करती है। इन्द्र हमेशा वर्षा करते हैं। मेघों की गर्जना बहुत बार सुनने को मिलती है।[5]इसमें अर्जुन का क्या काम है[6] इस बात को लेकर क्यों उसकी प्रशंसा की जाती है? इसका कारण इस बात के सिवा और क्या हो सकता है कि आचार्य के मन में अर्जुन का भला करने की इच्छा हो एवं हमारे प्रति इनके हृदय में केवल द्वेष तथा रोष का भाव ही संचित हो? ‘आचार्य लोग बड़े दयालु, बुद्धिमान और पाप तथा हिंसा के विरुद्ध विचार रखने वाले होते हैं। जब कोई महान भय का अवसर प्राप्त हो, उस समय इनसे कोई किसी प्रकार की सलाह नहीं पूछनी चाहिये। ‘पण्डित लोग सुन्दर महलों और मन्दिरों में, सभाओं में और बगीचों में बैठकर जब विचित्र कथा वार्ता सुना रहे हों, तब वहीं उनकी शोभा होती है।

जनसमुदाय में बहुत से आश्चर्यजनक विनोदपूर्ण कार्य करने तथा यज्ञ- सम्बन्धी आयुधों[7] को यथास्थान रखने एवं प्रोक्षण आदि करने में ही पण्डितों की शोभा है। ‘दूसरों के छिद्र को जानने या देचाने में, मनुष्यों की दिनचर्या बताने में, घोड़े तथा रथ यात्रा करने का मुहुर्त आदि से निकालने में, गदहों, ऊँटों, बकरों और भेड़ों की गुण दोष समीक्षा तथा घर के श्रेष्ठ दरवाजों पर किये जाने वाले मांगलिक कृत्य में, नवीन अन्न का इष्टि द्वारा संस्कार कराने तथा अन्न में केश कीट आदि गिर जाने से जो दोष आता है, उन पर विचार करने में भी पण्डितों की राय लेनी चाहिये। ऐसे ही कार्यों में उनकी शोभा है। ‘शत्रुओं के गुणों का बखान करने वाले पण्डितों को पीछे करके ऐसी नीति काम मे लें, जिससे शत्रु का वध हो सके। ‘गौओं को बीच में खड़ी करके उनके चारों ओर सेना का व्यूह बना लिया जाय तथा सब ओर से रक्षा की ऐसी व्यवस्था कर ली जाय, जिससे हम शत्रुओं के साथ युद्ध कर सकें।’[8]

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत विराट पर्व अध्याय 47 श्लोक 12-24
  2. इनकी बातों से हतोत्साह होकर
  3. आगे रहने पर
  4. इससे किसी की वीरता का क्या संबंध है,
  5. इससे डरने या अपशकुन मानने की क्या बात है?
  6. कौन सा चमत्कार है?
  7. पात्रों
  8. महाभारत विराट पर्व अध्याय 47 श्लोक 25-34

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