अर्जुन और कृपाचार्य का युद्ध देखने के लिए देवताओं का आगमन

महाभारत विराट पर्व के गोहरण पर्व के अंतर्गत अध्याय 56 में अर्जुन और कृपाचार्य का युद्ध देखने के लिए देवताओं के आगमन का वर्णन हुआ है[1]-

देवताओं का विमानों द्वारा युद्ध देखने के लिए आना

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! तदनन्तर भयंकर धनुष धारण करने वाले कौरवों के वे सैनिक शनैः शनैः आगे बढ़ने लगे। उस समय वे ऐसे दिखायी दे रहे थे, मानो ग्रीष्म के अन्त एवं वर्षा के प्रारम्भ में मनद वायु द्वारा प्रेरित मेघ धीरे धीरे आ रहे हों। घुड़सवार योद्धा समीप आकर खड़े हो गये। घोड़ों के साथ ही भयंकर हाथी भी आगे बढ़ आये। उन्हें महावत तोमर और अंकुशों की मार से आगे बढ़ने की प्रेरणा दे रहे थे औश्र उन हाथियों पर बैठे हुए शूर वीर अपने विचित्र कवचों की प्रभा से प्रकाशित हो रहे थे। राजन! इसी समय देवताओं सहित इन्द्र विमान पर बैठकर विश्वेदेव, अश्विनीकुमार तथा मरुद्गणों के साथ वहाँ आये, जहाँ परस्पर शत्रुता रखने वाले दो दलों का भयंकर संघर्ष छिड़ा हुआ था। उस समय देवता, यक्ष, गन्धर्व तथा बड़े बड़े नागों ( के विमानों ) से भरा हुआ वहाँ का आकाश बादलों के आवरण से रहित ग्रह मण्डल की भाँति शोभा पाने लगा। कृपाचार्य और अर्जुन के संग्राम में देवताओं के उन अस्त्रों की शक्ति का मनुष्यों पर प्रयोग करने वाले शूरवीरों के उस महा भयंकर युद्ध को अपनी आँखों से देखने के लिये देवता लोग पृथक-पृथक अपने विमानों पर बैठकर आये थे। उन विमानों में देवराज इन्द्र का आकाशचारी विमान उस समय सबसे अधिक शोभा पा रहा था। वह इच्छानुसार चलने वाला दिव्य यान सब प्रकार के रत्नों से विभूषित था। उस विमान को एक करोड़ खंभों ने धारण कर रक्खा था। उनमें एक ओर सोने के और दूसरी ओर मणि एवं रत्नों के खंभे लगे थे। उस विमान में इन्द्र सहित तैंतीस देवता विराजमान थे। इनके सिवा गन्धर्व, राक्षस, सर्प, पितर, महर्षिगण, राजा, बसुमना, बलाक्ष, सुप्रतर्दन, अष्टक, शिबि, ययाति, नहुष, गय, मनु, पूरू, रघु, भानु, कृशाश्व, सगर, तथा नल- ये सब तेजस्वी रूप धारण करके देवराज के विमान में दृष्टिगोचर हो रहे थे। अग्नि, ईश, सोम, नरुण, प्रजापति, धाता, विधाता कुबेर, यम, अलम्बुष और उग्रसेन पृथक-पृथक विमान अपनी- अपनी लंबाई चैड़ाई के अनुसार आकाश के विभिन्न प्रदेशों में प्रकाशित हो रहे थे। ये सभी देव समुदाय, सिद्ध और महर्षिगण अर्जुन तथा कौरव दल का युद्ध देखने के लिये जुटे थे। जनमेजय! जैसे वसन्त के प्रारम्भ में वन के फूलों की मनोहर सुगन्ध सब ओर फैलने लगती है, उसी प्रकार दिव्य मालाओं की पुण्यमय गन्ध वहाँ सब ओर छा गयी। उन विमानों में बैठे हुए देवताओं के रत्न, छत्र, वस्त्र, मालाएँ और चँवर आदि स्पष्ट दिखायी दे रहे थे। धरती की धूल शानत हो गयी थी और पृथ्वी की प्रत्येक वस्तु पर ( दिव्य ) किरणों का प्रकाश छा गया था।

वायु दिव्य गन्ध लेकर वहाँ पर सिथत योद्धाओं का सेवन करती थी। श्रेष्ठ देवताओं द्वारा लाये हुए भाँति-भाँति के विचित्र विमान अनेकानेक रत्नों से उद्भासित थे। उनमें से कुछ स्थिर हो गये थे और कुछ ( नीचे - ऊपर ) उड़ रहे थे। उनके द्वारा उद्भासित होने वाले आकाश की विचित्र शोभा हो रही थी। वहाँ विमानस्थ देवताओं से घिरे हुए वज्रधारी महा तेजस्वी इन्द्र पद्म और उत्पलों की माला पहने हुए सुशोभित हो रहे थे। वे अनेक वीरों के साथ छिड़े हुए अर्जुन के उस महान संग्राम को बार-बार देखते थे, तो भी तुम नहीं होते थे।[2]

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत विराट पर्व अध्याय 56 श्लोक 1-12
  2. महाभारत विराट पर्व अध्याय 56 श्लोक 13-19

संबंधित लेख

महाभारत विराट पर्व में उल्लेखित कथाएँ


पांडवप्रवेश पर्व
विराटनगर में अज्ञातवास करने हेतु पांडवों की गुप्त मंत्रणा | अज्ञातवास हेतु युधिष्ठिर द्वारा अपने भावी कार्यक्रम का दिग्दर्शन | भीमसेन और अर्जुन द्वारा अज्ञातवास हेतु अपने अनुकूल कार्यों का वर्णन | नकुल, सहदेव और द्रौपदी द्वारा अज्ञातवास हेतु अपने कर्तव्यों का दिग्दर्शन | धौम्य द्वारा पांडवों को राजा के यहाँ रहने का ढंग बताना | पांडवों का श्मशान में शमी वृक्ष पर अपने अस्त्र-शस्त्र रखना | युधिष्ठिर द्वारा दुर्गा देवी की स्तुति | युधिष्ठिर का राजसभा में राजा विराट से मिलना | युधिष्ठिर का विराट के यहाँ निवास पाना | भीमसेन का विराट की सभा में प्रवेश और राजा द्वारा उनको आश्वासन | द्रौपदी का सैरन्ध्री के वेश में रानी सुदेष्णा से वार्तालाप | द्रौपदी का रानी सुदेष्णा के यहाँ निवास पाना | सहदेव की विराट के यहाँ गौशाला में नियुक्ति | अर्जुन की विराट के यहाँ नृत्य प्रशिक्षक के पद पर नियुक्ति | नकुल का विराट के अश्वों की देखरेख में नियुक्त होना
समयपालन पर्व
भीमसेन द्वारा जीमूत नामक मल्ल का वध
कीचकवध पर्व
कीचक की द्रौपदी पर आसक्ति और प्रणय निवेदन | द्रौपदी द्वारा कीचक को फटकारना | सुदेष्णा का द्रौपदी को कीचक के यहाँ भेजना | कीचक द्वारा द्रौपदी का अपमान | द्रौपदी का भीमसेन के समीप जाना | द्रौपदी का भीमसेन से अपना दु:ख प्रकट करना | द्रौपदी का भीमसेन के सम्मुख विलाप | द्रौपदी का भीमसेन से अपना दु:ख निवेदन करना | भीमसेन और द्रौपदी का संवाद | भीमसेन और कीचक का युद्ध | भीमसेन द्वारा कीचक का वध | उपकीचकों का सैरन्ध्री को बाँधकर श्मशानभूमि में ले जाना | भीमसेन द्वारा उपकीचकों का वध | द्रौपदी का विराट नगर में लौटकर आना | द्रौपदी का बृहन्नला और सुदेष्णा से वार्तालाप
गोहरण पर्व
दुर्योधन को उसके गुप्तचरों द्वारा कीचकवध का वृत्तान्त सुनाना | दुर्योधन का सभासदों से पांडवों का पता लगाने हेतु परामर्श | द्रोणाचार्य की सम्मति | युधिष्ठिर की महिमा कहते हुए भीष्म की पांडव अन्वेषण के विषय में सम्मति | कृपाचार्य की सम्मति और दुर्योधन का निश्चय | सुशर्मा का कौरवों के लिए प्रस्ताव | त्रिगर्तों और कौरवों का मत्स्यदेश पर धावा | पांडवों सहित विराट की सेना का युद्ध हेतु प्रस्थान | मत्स्य तथा त्रिगर्त देश की सेनाओं का युद्ध | सुशर्मा द्वारा विराट को बन्दी बनाना | पांडवों द्वारा विराट को सुशर्मा से छुड़ाना | युधिष्ठिर का अनुग्रह करके सुशर्मा को मुक्त करना | विराट द्वारा पांडवों का सम्मान | विराट नगर में राजा विराट की विजय घोषणा | कौरवों द्वारा विराट की गौओं का अपहरण | गोपाध्यक्ष का उत्तरकुमार को युद्ध हेतु उत्साह दिलाना | उत्तर का अपने लिए सारथि ढूँढने का प्रस्ताव | द्रौपदी द्वारा उत्तर से बृहन्नला को सारथि बनाने का सुझाव | बृहन्नला के साथ उत्तरकुमार का रणभूमि को प्रस्थान | कौरव सेना को देखकर उत्तरकुमार का भय | अर्जुन का उत्तरकुमार को आश्वासन देकर रथ पर चढ़ाना | द्रोणाचार्य द्वारा अर्जुन के अलौकिक पराक्रम की प्रशंसा | अर्जुन का उत्तर को शमीवृक्ष से अस्त्र उतारने का आदेश | उत्तर का शमीवृक्ष से पांडवों के दिव्य धनुष आदि उतारना | उत्तर का बृहन्नला से पांडवों के अस्त्र-शस्त्र के विषय में प्रश्न करना | बृहन्नला द्वारा उत्तर को पांडवों के आयुधों का परिचय कराना | अर्जुन का उत्तरकुमार को अपना और अपने भाइयों का यथार्थ परिचय देना | अर्जुन द्वारा युद्ध की तैयारी तथा अस्त्र-शस्त्रों का स्मरण | अर्जुन द्वारा उत्तरकुमार के भय का निवारण | अर्जुन को ध्वज की प्राप्ति तथा उनके द्वारा शंखनाद | द्रोणाचार्य का कौरवों से उत्पात-सूचक अपशकुनों का वर्णन | दुर्योधन द्वारा युद्ध का निश्चय | कर्ण की उक्ति | कर्ण की आत्मप्रंशसापूर्ण अहंकारोक्ति | कृपाचार्य का कर्ण को फटकारना और युद्ध हेतु अपना विचार बताना | अश्वत्थामा के उद्गार | भीष्म द्वारा सेना में शान्ति और एकता बनाये रखने की चेष्टा | द्रोणाचार्य द्वारा दुर्योधन की रक्षा के प्रयत्न | पितामह भीष्म की सम्मति | अर्जुन का दुर्योधन की सेना पर आक्रमण और गौओं को लौटा लाना | अर्जुन का कर्ण पर आक्रमण और विकर्ण की पराजय | अर्जुन द्वारा शत्रुंतप और संग्रामजित का वध | कर्ण और अर्जुन का युद्ध तथा कर्ण का पलायन | अर्जुन द्वारा कौरव सेना का संहार | उत्तर का अर्जुन के रथ को कृपाचार्य के पास लेना | अर्जुन और कृपाचार्य का युद्ध देखने के लिए देवताओं का आगमन | कृपाचार्य और अर्जुन का युद्ध | कौरव सैनिकों द्वारा कृपाचार्य को युद्ध से हटा ले जाना | अर्जुन का द्रोणाचार्य के साथ युद्ध | द्रोणाचार्य का युद्ध से पलायन | अर्जुन का अश्वत्थामा के साथ युद्ध | अर्जुन और कर्ण का संवाद | कर्ण का अर्जुन से हारकर भागना | अर्जुन का उत्तरकुमार को आश्वासन | अर्जुन से दु:शासन आदि की पराजय | अर्जुन का सब योद्धाओं और महारथियों के साथ युद्ध | अर्जुन द्वारा कौरव सेना के महारथियों की पराजय | अर्जुन और भीष्म का अद्भुत युद्ध | अर्जुन के साथ युद्ध में भीष्म का मूर्च्छित होना | अर्जुन और दुर्योधन का युद्ध | दुर्योधन का विकर्ण आदि योद्धाओं सहित रणभूमि से भागना | अर्जुन द्वारा समस्त कौरव दल की पराजय | कौरवों का स्वदेश को प्रस्थान | अर्जुन का विजयी होकर उत्तरकुमार के साथ राजधानी को प्रस्थान | विराट की उत्तरकुमार के विषय में चिन्ता | उत्तरकुमार का नगर में प्रवेश और प्रजा द्वारा उनका स्वागत | विराट द्वारा युधिष्ठिर का तिरस्कार और क्षमा-प्रार्थना | विराट का उत्तरकुमार से युद्ध का समाचार पूछना | विराट और उत्तरकुमार की विजय के विषय में बातचीत | अर्जुन का विराट को महाराज युधिष्ठिर का परिचय देना | विराट को अन्य पांडवों का परिचय प्राप्त होना | विराट का युधिष्ठिर को राज्य समर्पण और अर्जुन-उत्तरा विवाह का प्रस्ताव | अर्जुन द्वारा उत्तरा को पुत्रवधू के रूप में ग्रहण करना | अभिमन्यु और उत्तरा का विवाह | विराट पर्व श्रवण की महिमा

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः