- महाभारत विराट पर्व के गोहरण पर्व के अंतर्गत अध्याय 53 में अर्जुन का दुर्योधन की सेना पर आक्रमण और गौओं को लौटा लाने का वर्णन हुआ है[1]-
विषय सूची
कौरव सेना द्वारा व्यूह रचना करना
वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! इस प्रकार कौरव सेना की व्यूह रचना हो जाने पर अर्जुन अपने रथ की घर्घराहट से सम्पूर्ण दिशाओं को गुँजाते हुए शीघ्र ही निकट आ पहुँचे। सैनिकों ने उनकी ध्वजा के अग्र भाग को देखा, उनके रथ से आती हुई भयंकर आवाज सुनी और खींचे जाते हुए गाण्डीव की ओर जोर से होने वाली टंकार ध्वनि भी कानों में पड़ी।
आचार्य द्रोण का संवाद
तब सब कुछ देखकर गाण्डीव धनुष धारण करने वाले महारथी अर्जुन को निकट आता जानकर [[द्रोण|आचार्य द्रोण] यह वचन बोले। द्रोण ने कहा - यह अर्जुन की ध्वजा का ऊपरी भाग दूर से ही प्रकाशित हो रहा है। यह उन्हीं के रथ की घर्घराहट का शब्द है। साथ ही ध्वजा पर बैठा वानर भी उच्च स्वर से गर्जना कर रहा है। यह देखो, उस श्रेष्ठ रथ में बैठे हुए रथियों में प्रधान वीर अर्जुन धनुषों में सर्वोत्तम गाण्डीव की डोरी खींच रहे हैं और उससे वज्र की गड़गड़ाहट के समान शब्द हो रहा है। ये दो बाण एक साथ आकर मेरे पैरों के आगे गिरे हैं और दूसरे दो बाण मेरे दोनों कंधों को छूकर निकल गये हैं। कुन्ती नन्दन अर्जुन वन में रहकर वहाँ तपस्या तथा शौर्य द्वारा अतिमानुष ( मानवी शरीर के बाहर का ) पराक्रम करके आज प्रकट हुए हैं। ये प्रथम दो बाणों द्वारा मुझे प्रणाम कर रहे हैं और दूसरे दो बाणों द्वारा कानों में युद्ध के लिये आज्ञा माँग रहे हैं। बन्धु बान्धवों को प्रिय लगने वाले परम बुधिमान अर्जुन को आज हमने दीर्घकाल के बाद देखा है। अहा! पाण्डु पुत्र धनुजय अपनी दिव्य लक्ष्मी ( शोभा ) से अत्यन्त प्रकाशित हो रहे हैं। रथ पर बैठे हुए धनजय ने बाण, सुन्दर दस्ताने, तरकस, शंख, कवच, किरीट, खड्ग और धनुष धारण कर रक्खे हैं। इनके रथ पर पताका फहरा रही है। इन सामग्रियों से सम्पन्न होकर आज ये तेजस्वी पार्थ स्त्रुवा आदि यज्ञ साधनों से घिरे और घी की आहुति पाकर प्रज्वलित हुई अग्नि के समान शोभा पा रहे हैं।
अर्जुन एवं उत्तर का संवाद
वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! तपते हुए सूर्य की भाँति देदीप्यमान पाण्डूनन्दन अर्जुन को समीप आते देख शत्रु उनकी ओर दृष्टिपात न कर सके। रथियों की सेना को सामने देखकर कुन्ती कुमार अर्जुन ने सारथि से कहा।
अर्जुन ने कहा - सारथे! धनुष से बाण चलाने पर वह जितनी दूरी पर जाकर गिरता है, कौरव सेना से उतना ही अन्तर रह जाय, तो घोड़ों का रोक लेना; जिससे मैं यह देख लूँ कि इस सेना में वह कुरुकुलाधम दुर्योधन कहाँ है। उस अत्यन्त अभिमानी दुर्योधन को देख लेने पर मैं इन सब योद्धाओं को छोड़कर दसी के सिर पर पडूँगा। उसके पराजित होने से ये सब परास्त हो जायँगे। ये आचार्य द्रोण खड़े हैं। उनके बाद उनके पुत्र अश्वत्थामा हैं। उधर पितामह भीष्म दिखाई देते हैं। इधर कृपाचार्य हैं और वह कर्ण है। ये सब महान धनुर्धर यहाँ युद्ध के लिये आये हैं। परंतु इनमें मैं राजा दुर्योधन को नहीं देखता हूँ। मुझे संदेह है कि वह दक्षिण दिशा का मार्ग पकड़कर गौओं को साथ ले अपनी जान बचाये भागा जा रहा है। अतः विराट नन्दन! इस रथियों की सेना को छोड़ो और जहाँ दुर्योधन है, वहीं चलो। मैं वहीं युद्ध करूँगा। यहाँ व्यर्थ युद्ध करने की आवश्यकता नहीं है। उसे जीतकर गौओं को अपने साथ ले मैं पुनः लौट जाऊँगा।
अर्जुन का दुर्योधन की सेना पर आक्रमण
वैशम्पायन जी कहते हैं - अर्जुन के इस प्रकार आज्ञा देने पर विराट कुमार उत्तर ने यत्न पूर्वक घोड़े की रास खींचकर जहाँ बड़े - बड़े कौरव महारथी खड़े थे, उधर जाने से उन्हें रोका। फिर उसने काबू में रखते हुए उन घोड़ों को उसी ओर बढ़ाया, जिधर राजा दुर्योधन गया था। रथियों की सेना छोड़कर श्वेतवाहन अर्जुन जब दूसरी ओ चल दिये, तब उनका अभिप्राय समझकर कृपाचार्य बोले- ‘ये अर्जुन राजा दुर्योधन के बिना ठहरना नहीं चाहते, इसलिये उधर ही बड़े वेग से जा रहे हैं। अतः हम लोग भी चलकर इनका पीछा करें। ‘इस समय ये बड़े क्रोध में भरे हैं; अतः साक्षात इन्द्र या देवकी नन्दन श्रीकृष्ण अथवा पुत्र सहित महारथी आचार्य द्रोण के सिवा दूसरा कोई इनके साथ अकेला युद्ध नहीं कर सकता। ‘ये गौएँ अथवा प्रचुर धन हमें क्या लाभ पहुँचायेंगे? राजा दुर्योधन पाथ रूपी जल में पुरानी नाव की भाँति डूबना चाहता है।[2]
उधर अर्जुन उसी प्रकार रथ से दुर्योधन के पास पहुँच गये और उच्च स्वर से अपना नाम सुनाकर बड़ी शीघ्रता से कौरव सेना पर टिड्डी दलों की भाँति असंख्य बाणों की वर्षा करने लगे। अर्जुन के छोड़े हुए बाण समूहों से आच्छादित होकर वे समस्त सैनिक कुछ देख नहीं पाते थे। पृथ्वी और आकाश भी बाणों से ढँक गये थे। युद्ध में बाणों की मार खाकर कौरव सैनिक धराशायी होते जा रहे थे, तो भी उनका मन वहाँ से भागने को नहीं होता था। वे मन ही मन अर्जुन की फुर्ती की सराहना करते थे। तदनन्तर पार्थ ने अपना शंख बजाया, जो शत्रुओं के रोंगटे खड़े कर देने वाला था। फिर उन्होंने अपने श्रेष्ठ धनुष की टंकार करके ध्वज पर बैठे हुए भूतों को सिंहनाद करने की प्रेरणा दी।
गौओं को लौटा लाना
अर्जुन के शंखनाद, रथ के पहियों की घर्घराहट गाण्डीव धनुष की टंकार तथा ध्वज में निवास करने वाले मानवेत्तर भूतों के कोलाहल से पृथ्वी काँप उठी तथा गौएँ ऊपर को पूँछ उठाकर हिलाती और रम्भाती हुई सब ओर से लौट पड़ीं और दक्षिण दिशा की ओर भाग चलीं।[3]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ महाभारत विराट पर्व अध्याय 53 श्लोक 1-9
- ↑ महाभारत विराट पर्व अध्याय 53 श्लोक 10-19
- ↑ महाभारत विराट पर्व अध्याय 53 श्लोक 20-25
संबंधित लेख
महाभारत विराट पर्व में उल्लेखित कथाएँ
पांडवप्रवेश पर्व
विराटनगर में अज्ञातवास करने हेतु पांडवों की गुप्त मंत्रणा
| अज्ञातवास हेतु युधिष्ठिर द्वारा अपने भावी कार्यक्रम का दिग्दर्शन
| भीमसेन और अर्जुन द्वारा अज्ञातवास हेतु अपने अनुकूल कार्यों का वर्णन
| नकुल, सहदेव और द्रौपदी द्वारा अज्ञातवास हेतु अपने कर्तव्यों का दिग्दर्शन
| धौम्य द्वारा पांडवों को राजा के यहाँ रहने का ढंग बताना
| पांडवों का श्मशान में शमी वृक्ष पर अपने अस्त्र-शस्त्र रखना
| युधिष्ठिर द्वारा दुर्गा देवी की स्तुति
| युधिष्ठिर का राजसभा में राजा विराट से मिलना
| युधिष्ठिर का विराट के यहाँ निवास पाना
| भीमसेन का विराट की सभा में प्रवेश और राजा द्वारा उनको आश्वासन
| द्रौपदी का सैरन्ध्री के वेश में रानी सुदेष्णा से वार्तालाप
| द्रौपदी का रानी सुदेष्णा के यहाँ निवास पाना
| सहदेव की विराट के यहाँ गौशाला में नियुक्ति
| अर्जुन की विराट के यहाँ नृत्य प्रशिक्षक के पद पर नियुक्ति
| नकुल का विराट के अश्वों की देखरेख में नियुक्त होना
समयपालन पर्व
भीमसेन द्वारा जीमूत नामक मल्ल का वध
कीचकवध पर्व
कीचक की द्रौपदी पर आसक्ति और प्रणय निवेदन
| द्रौपदी द्वारा कीचक को फटकारना
| सुदेष्णा का द्रौपदी को कीचक के यहाँ भेजना
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| द्रौपदी का भीमसेन के सम्मुख विलाप
| द्रौपदी का भीमसेन से अपना दु:ख निवेदन करना
| भीमसेन और द्रौपदी का संवाद
| भीमसेन और कीचक का युद्ध
| भीमसेन द्वारा कीचक का वध
| उपकीचकों का सैरन्ध्री को बाँधकर श्मशानभूमि में ले जाना
| भीमसेन द्वारा उपकीचकों का वध
| द्रौपदी का विराट नगर में लौटकर आना
| द्रौपदी का बृहन्नला और सुदेष्णा से वार्तालाप
गोहरण पर्व
दुर्योधन को उसके गुप्तचरों द्वारा कीचकवध का वृत्तान्त सुनाना
| दुर्योधन का सभासदों से पांडवों का पता लगाने हेतु परामर्श
| द्रोणाचार्य की सम्मति
| युधिष्ठिर की महिमा कहते हुए भीष्म की पांडव अन्वेषण के विषय में सम्मति
| कृपाचार्य की सम्मति और दुर्योधन का निश्चय
| सुशर्मा का कौरवों के लिए प्रस्ताव
| त्रिगर्तों और कौरवों का मत्स्यदेश पर धावा
| पांडवों सहित विराट की सेना का युद्ध हेतु प्रस्थान
| मत्स्य तथा त्रिगर्त देश की सेनाओं का युद्ध
| सुशर्मा द्वारा विराट को बन्दी बनाना
| पांडवों द्वारा विराट को सुशर्मा से छुड़ाना
| युधिष्ठिर का अनुग्रह करके सुशर्मा को मुक्त करना
| विराट द्वारा पांडवों का सम्मान
| विराट नगर में राजा विराट की विजय घोषणा
| कौरवों द्वारा विराट की गौओं का अपहरण
| गोपाध्यक्ष का उत्तरकुमार को युद्ध हेतु उत्साह दिलाना
| उत्तर का अपने लिए सारथि ढूँढने का प्रस्ताव
| द्रौपदी द्वारा उत्तर से बृहन्नला को सारथि बनाने का सुझाव
| बृहन्नला के साथ उत्तरकुमार का रणभूमि को प्रस्थान
| कौरव सेना को देखकर उत्तरकुमार का भय
| अर्जुन का उत्तरकुमार को आश्वासन देकर रथ पर चढ़ाना
| द्रोणाचार्य द्वारा अर्जुन के अलौकिक पराक्रम की प्रशंसा
| अर्जुन का उत्तर को शमीवृक्ष से अस्त्र उतारने का आदेश
| उत्तर का शमीवृक्ष से पांडवों के दिव्य धनुष आदि उतारना
| उत्तर का बृहन्नला से पांडवों के अस्त्र-शस्त्र के विषय में प्रश्न करना
| बृहन्नला द्वारा उत्तर को पांडवों के आयुधों का परिचय कराना
| अर्जुन का उत्तरकुमार को अपना और अपने भाइयों का यथार्थ परिचय देना
| अर्जुन द्वारा युद्ध की तैयारी तथा अस्त्र-शस्त्रों का स्मरण
| अर्जुन द्वारा उत्तरकुमार के भय का निवारण
| अर्जुन को ध्वज की प्राप्ति तथा उनके द्वारा शंखनाद
| द्रोणाचार्य का कौरवों से उत्पात-सूचक अपशकुनों का वर्णन
| दुर्योधन द्वारा युद्ध का निश्चय
| कर्ण की उक्ति
| कर्ण की आत्मप्रंशसापूर्ण अहंकारोक्ति
| कृपाचार्य का कर्ण को फटकारना और युद्ध हेतु अपना विचार बताना
| अश्वत्थामा के उद्गार
| भीष्म द्वारा सेना में शान्ति और एकता बनाये रखने की चेष्टा
| द्रोणाचार्य द्वारा दुर्योधन की रक्षा के प्रयत्न
| पितामह भीष्म की सम्मति
| अर्जुन का दुर्योधन की सेना पर आक्रमण और गौओं को लौटा लाना
| अर्जुन का कर्ण पर आक्रमण और विकर्ण की पराजय
| अर्जुन द्वारा शत्रुंतप और संग्रामजित का वध
| कर्ण और अर्जुन का युद्ध तथा कर्ण का पलायन
| अर्जुन द्वारा कौरव सेना का संहार
| उत्तर का अर्जुन के रथ को कृपाचार्य के पास लेना
| अर्जुन और कृपाचार्य का युद्ध देखने के लिए देवताओं का आगमन
| कृपाचार्य और अर्जुन का युद्ध
| कौरव सैनिकों द्वारा कृपाचार्य को युद्ध से हटा ले जाना
| अर्जुन का द्रोणाचार्य के साथ युद्ध
| द्रोणाचार्य का युद्ध से पलायन
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| कर्ण का अर्जुन से हारकर भागना
| अर्जुन का उत्तरकुमार को आश्वासन
| अर्जुन से दु:शासन आदि की पराजय
| अर्जुन का सब योद्धाओं और महारथियों के साथ युद्ध
| अर्जुन द्वारा कौरव सेना के महारथियों की पराजय
| अर्जुन और भीष्म का अद्भुत युद्ध
| अर्जुन के साथ युद्ध में भीष्म का मूर्च्छित होना
| अर्जुन और दुर्योधन का युद्ध
| दुर्योधन का विकर्ण आदि योद्धाओं सहित रणभूमि से भागना
| अर्जुन द्वारा समस्त कौरव दल की पराजय
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| विराट को अन्य पांडवों का परिचय प्राप्त होना
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