अर्जुन और कर्ण का संवाद

महाभारत विराट पर्व के गोहरण पर्व के अंतर्गत अध्याय 60 में अर्जुन और कर्ण के संवाद का वर्णन हुआ है। यहाँ वैशम्पायन जी ने जनमेजय से अर्जुन और कर्ण का संवाद की कथा कही है।[1]

अर्जुन और कर्ण का संवाद

अर्जुन बोले - कर्ण! पहले कौरवों की सभा में तूने जो अपनी बहुत प्रशंसा करते हुए यह बात कही थी कि युद्ध में मेरे समान दूसरा कोई योद्धा नहीं है।[2] यह युद्ध का अवसर उपस्थित हो गया है। कर्ण! आज इस महासंग्राम में मेरे साथ भिड़कर तू अपने को भली-भाँति निर्बल समझ लेगा और फिर कभी दूसरों का अपमान नहीं करेगा। पहले तूने केवल धर्म की अवहेलना करके बड़ी कठोर बातें कही हैं, परंतु तू जो कुछ करना चाहता है, वह तेरे लिये मैं अत्यन्त दुष्कर समझता हूँ। राधा नन्दन! मेरे साथ भिड़न्त होने के पहले कौरवों की सभा में तूने जो कुछ कहा है, आज मेरे साथ युद्ध करके वह सब सत्य कर दिखा। अरे!

भरी सभा में दुरात्मा कौरव पाञ्चाल राजकुमारी द्रौपदी को क्लेश दे रहे थे और तू मौज से यह सब देखता रहा। आज केवल उस अत्याचार का फल भोग ले। पहले मैं धर्म के बन्धन मे बँधा हुआ था। इसलिये मैंने सब कुछ (चुपचाप) सह लिया। परंतु राधा पुत्र! आज के युद्ध में मेरे उस क्रोध का फल मेरी विजय के रूप में अभी देख ले। ओ दुर्मते! हमने बारह वर्षों तक वन में रहकर जो क्लेश सहन किये हैं, उनका बदला चुकाने के लिये आज मेरे बढ़े हुए क्रोध का फल तू अभी चख ले। कर्ण! आ, रण भूमि में मेरा सामना कर। समस्त कौरव और तेरे सैनिक सब दर्शक होकर हमारे युद्ध को देखें।

कर्ण कथन

कर्ण ने कहा- कुन्ती पुत्र! तू मुझसे जो कुछ कहता है उसे क्रिया द्वारा करके दिखा। मेरी बातें कार्य करने की अपेक्षा बहुत बढ़ चढ़कर होती हैं। यह बात भूमण्डल में प्रसिद्ध है। पार्थ! तेरा यह जबानी पराक्रम देखकर तो हम इसी परिणाम पर पहुँचते हैं कि तूने पहले जो कुछ सहन किया है, वह अपनी असमर्थता के ही कारण किया है। यदि तूने पहले धर्म के बन्धन में बँधकर कष्ट सहन किया है, तो आज भी तू उसी प्रकार बँधा हुआ है; तो भी तू अपने आपको उस बन्धन से मुक्त सा मान रहा है। यदि तूने वनवास के पूर्वोक्त नियम का भली-भाँति पालन कर लिया है, तो तू धर्म और अर्थ का ज्ञाता ठहरा। इस लिये तूने कष्ट सहा है और उसी को याद करके इस समय मेरे साथ लड़ना चाहता है।[1]

पार्थ! यदि इस समय साक्षात इन्द्र भी तेरे लिये युद्ध करने आयें, तो भी युद्ध में पराक्रम दिखाते हुए मुझसे किसी प्रकार की व्यथा न होगी। कुन्तीकुमार! मेरे साथ युद्ध का जो तेरा हौसला है, वह अभी- अभी प्रकट हुआ है। अतः अब मेरे साथ तेरा युद्ध होगा और आज तू मेरा बल स्वयं देख लेगा।

अर्जुन बोले- राधा पुत्र! अभी कुछ ही देर पहले की बात है, मेरे सामने युद्ध से पीठ दिखाकर तू भाग गया था, इसीलिये अब तक जी रहा है; किंतु तेरा छोटा भाई मारा गया। तेरे सिवा दूसरा कौन ऐसा होगा, जो अपने भाई को मरवाकर और युद्ध का मुहाना छोड़कर (भाग जाने के बाद भी) भले मानसों के बीच में चाड़ा होकर डींग मारेगा?।[3]

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत विराट पर्व अध्याय 60 श्लोक 1-12
  2. उसकी सच्चाई की परीक्षा के लिये
  3. महाभारत विराट पर्व अध्याय 59 श्लोक 14-21

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