भगवान वासुदेव -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
धनुर्भंग
‘महाराज! व्रज से आये बालक धनुषशाला में……..।’ रक्त से लथपथ, भग्नशिर, टूटे हाथ एक धनुष का प्रहरी किसी प्रकार भागता आया और कंस के पैरों पर गिर पड़ा। सेनापति इतनी शीघ्रता में जितने भी सैनिक प्रस्तुत मिले, उन्हें लेकर चल पड़े। भवन के भीतर बालकों से युद्ध करना था उन्हें। गजसेना, अश्वसेना व्यर्थ थी। शतघ्नी, भुशुण्डी आदि अस्त्र ही नहीं, धनुष भी अनुपयोगी थे। भल्ल–त्रिशूल, मुद्गर, तोमर, खड्ग जैसे अस्त्र लिये पदाति सेना के सैनिक दौड़ पड़े। यमदण्ड उठाये अकेले यमराज त्रिभुवन के लिए भयंकर होते हैं और वहाँ तो दो दण्डधर थे–यमराज भी जिनके भ्रूभंग से काँप उठे, ऐसे दण्डधर। घूम रहे थे उनके करों में धनुष-खण्ड-आघात, चीत्कार, रक्त की फुहारें–सैनिकों को हाथ उठाने का भी अवकाश तो नहीं मिला। कोई एक भी भाग नहीं सका। भागने का उद्योग और भी भयानक था। कोई द्वार की ओर आया भी तो उसे शतश: बालक लकुट लिये दिखे। दो ही बालक प्रलय मचाये थे और द्वार घेरे ये सैकड़ों दण्डधर–प्रांगण में ही उसे भागना था और वहाँ मृत्यु-वर्षा हो रही थी। कोई खड़ा नहीं, कोई कराहता भी नहीं। शव बिछ गये–पट उठे एक पर एक उस प्रांगण में सैनिकों के। उनके शस्त्र छिन्न पड़े रहे। घड़ी भर भी नहीं लगा और वहाँ शान्ति–मृत्यु की शान्ति हो गयी। दोनों भाइयों ने अब धनुष-खण्ड फेंक दिये हाथ से उन्हीं शवों के मध्य। दोनों वेदी से कूद आये। दोनों के वस्त्रों से रक्त टपक रहा था। सखाओं ने बढ़कर बारी-बारी से दोनों को अंकमाल दी। वहाँ के स्वच्छ जल से श्याम-बलराम ने, सखाओं ने भी कर-चरण भली प्रकार धोये। कंस के रंगकार से छीने वस्त्र वहीं उतार फेंके। वे वस्त्र दोनों भाइयों के और उनको अंकमाल देने से गोपकुमारों के भी रक्त-दूषित हो चुके थे। उस भवन से जब वे निकले, वैसे ही वेश में थे जैसे व्रजराज के पास से चलते समय थे। बिखरी अलकें, कटि से कछनी, कन्धों पर पटुके। वस्त्र, अंगराग, माल्य, अलकों के सुमन सब उस भवन में ही विसर्जित हो गये। ‘कंस की संसार में प्रसिद्ध अजेय सेना आयी थी।’ नागरिकों में जब बात फैलती है, प्राय: बहुत बड़े रूप से ही कही जाती है। मथुरा में शीघ्रता से चर्चा फैलने लगी– ‘पूरी सेना आयी थी इन्हें मारने और वह भवन प्रांगण ऊपर तक उन सैनिकों के शवों से भरा पड़ा है। जल निकलने की नालियों से भलभलाता रक्त बहता ही जा रहा है। मथुरा की प्राय: पूरी सेना दोनों भाइयों ने मार दी।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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