पार्थ सारथि -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
86. अनुगीता
वह आत्मा इस समस्त दृश्य का उपादान होने पर भी इससे सर्वथा निर्लिप्त है। इसकी निर्लिप्तता समझाने के लिए कृतवीर्य के पुत्र सहस्त्रबाहु अर्जुन के अपराध से क्रुद्ध होकर क्षत्रियों के बार-बार संहार में लगे परशुराम जी को आकाशवाणी ने रोका और अलर्क का दृष्टान्त दिया- 'महाराज अलर्क ने अपने धनुष के बल पर सम्पूर्ण पृथ्वी को जीत लिया; किन्तु उससे शान्ति नहीं मिली तो अपने भीतर अशान्ति का कारण ढूँढ़ने लगे। इन्द्रियाँ तथा मन अशान्ति दे रहे थे; किन्तु इनमें-से किसी पर उनका बाण काम नहीं कर सकता था। इससे तो वे स्वयं आहत होते। अत: शस्त्र त्यागकर उन्होंने ध्यान के द्वारा मन-इन्द्रियों का निग्रह किया। इससे उन्होंने इनको जीतकर शान्ति प्राप्त की।' सत्त्व, रज तथा तम ये प्रकृति के तीन गुण हैं। इनमें-से सत्त्वगुण के हर्ष, प्रीति और आनन्द, रजोगुण के- तृष्णा-कोध्र-अभिनिवेश तथा तमोगुण के श्रम-तन्द्रा-मोह, ये तीन-तीन कार्य हैं। शान्तचित्त, जितेन्द्रिय, आलस्यहीन पुरुष, शम-दम द्वारा इनका उच्छेद करके त्रिगुणों पर विजय पाते हैं। परमभक्त राजा अम्बरीष ने जब राज्य सम्हाला तो विचार किया- 'मैंने सब दोषों पर तो विजय प्राप्त कर ली, किन्तु अभी सबसे बड़ा दोष तो बचा ही है। वह नष्ट कर देने योग्य है; क्योंकि वैराग्य का वही बाधक है। वही सब नीचे कर्म कराता है। वह दोष है लोभ। लोभ से तृष्णा और उससे चिन्ता होती है। लोभ ही नाना अपकर्मों में लगाकर देह-बन्धन में जकड़ता है। अत: लोभ का समूलोन्मूलन किये बिना आत्मराज्य पर अधिकार नहीं हो सकता।' एक बार महाराज जनक ने एक अपराधी ब्राह्मण को अपने राज्य से निकल जाने का दण्ड सुनाया तो ब्राह्मण ने उनसे उनके राज्य की सीमा पूछी। जनक ने सोचकर कहा- 'आप ठीक पूछते हैं। पृथ्वी में कहीं भी मेरा राज्य नहीं है अथवा सर्वत्र मेरा ही राज्य है। अत: आप चाहे जहाँ रहें।' ब्राह्मण ने इसका स्पष्टीकरण चाहा। जनक ने कहा- 'विचार करने पर कोई भी वस्तु ऐसी नहीं मिलती, जिसे मैं अपनी कह सकूँ। सब प्रकृति के गुणों का निर्माण है और प्रजापति की सृष्टि है। लेकिन मैं अपनी नासिका में पहुँची गन्ध को भी अपने लिए नहीं ग्रहण करता, अत: पृथ्वी को मैंने जीत लिया है। यही अवस्था रस, रूप, स्पर्श, शब्द की भी है। अत: मैं जल, अग्नि, वायु, आकाश से भी अपराजित इनका द्रष्टा, साक्षी हूँ। इसलिए सर्वत्र मेरा ही राज्य है।' 'मैं धर्म हूँ।' उस ब्राह्मण ने कहा- 'तुम्हारी परीक्षा लेने आया था। तुमने धर्म का तत्त्व ठीक समझा है।' ब्राह्मण यह कहकर अदृश्य हो गया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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