पार्थ सारथि -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
71. युधिष्ठिर को उलाहना
शल्य के मारे जाने और सब सेना के समाप्त हो जाने पर दुर्योधन ने देखा कि वह सर्वथा अकेला है। उसे पता नहीं था कि उसके पक्ष में कोई बचा भी है। जिधर भी दृष्टि जाय, चारों ओर दूर तक रक्त, टूटे रथ, कटे फटे अश्वों, गजों, मनुष्यों के शव की ढेरी ही दीखती थी। कुत्ते, गीध, शृगाल, कौए, चीलों के झुण्ड उतर आये थे। बड़ा भयंकर दृश्य था। दुर्योधन स्वयं बहुत घायल हो चुका था। उसका कवच युद्ध में कट गया था। अश्व, सारथि मारे जा चुके थे। रथ नष्ट हो गया था। वह बहुत अधिक थका था। किसी भी क्षण पाण्डव आकर धर दबोचेंगे, यह भय था ही। अतः अपनी गदा उठाये वह पैदल ही चल पड़ा। उसने सरोवर के जल में जल-स्तंभन विद्या का आश्रय लेकर कुछ समय विश्राम करने का विचार किया। उसे उस समय विश्राम सबसे अधिक आवश्यक था। कोई भी नवीन योजना सोचने को भी समय चाहिए। सञ्जय को भगवान व्यास ने छुड़वा दिया था। वे भी पैदल लौट रहे थे। मार्ग में दुर्योधन उन्हें मिल गया। सञ्जय ने बतलाया कि उसके पक्ष में कृपाचार्य, कृतवर्मा और अश्वत्थामा बचे हैं। तीनों साथ हैं। दुर्योधन ने अपने छिपने का स्थान बतला दिया सञ्जय को और कह दिया कि सञ्जय उन तीनों को तथा उसके पिता को वह स्थान बतला दें। कोई रहस्य तब रहस्य नहीं रह जाता, जब उसे दो से अधिक व्यक्ति जान लेते है। तब बहुत प्रयत्न और सावधानी रखने पर भी उसकी गोपनीयता के भंग होने का छिद्र निकल ही आता है। संजय से समाचार पाकर आश्वतथामा आदि दुर्योधन से मिलने सरोवर के समीप आये। उनसे बातचीत करने दुर्योधन जल से ऊपर उठा। वन से आखेट करके लौटते कुछ व्याधों ने दूर से यह सब देख लिया। उन्हें दुर्योधन के छिपने का स्थान ज्ञात हो गया। दुर्योधन कहीं भाग कर छिप गया है, यह बात शीघ्र पाण्डवों के ध्यान में आ गयी। तत्काल उन्होंने दुर्योधन का पता देने वाले को पुरस्कृत करने की घोषणा कर दी चारों ओर। वे उस प्रधान शत्रु को थोड़ा भी समय नहीं देना चाहते थे। भीमसेन को आखेट बहुत प्रिय था। फलतः वन में आखेट करने वाले व्याधों से उनकी मैत्री थी। दुर्योधन का पता पाते ही वे व्याध सीधे पाण्डव शिविर में भीमसेन को पूछते आये। उन्होंने पता बतला दिया, पुरस्कृत हुए। पाण्डवों तथा श्रीकृष्ण को उन्होंने प्रसन्तापूर्वक उस सरोवर के समीप पहुँचा दिया। पानी में छिपे दुर्योधन को युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण की सम्मति से ललकारा। मानी दुर्योधन यह कैसे सह ले कि कोई उसे कायर, डरपोक कहे ! उसका कहना था कि वह केवल कुछ काल विश्राम करना चाहता है; किन्तु उसे पाण्डव समय देने को प्रस्तुत नहीं थे । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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