पार्थ सारथि -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
65. बात का बतंगड़
बडें लोगो में भी कभी-कभी बिना बात बतंगड़ बढ़ जाता है और वह बड़े भारी अनर्थ का कारण हो जाता हैं। अत्यन्त उपेक्षणीय बातों को कारण बनाकर विश्व में अनेकों बार विनाश ने महाताण्डव किया हैं। ऐसे महा अनर्थ का अवसर पाण्डवों के मध्य भी आ गया और अत्यन्त तुच्छ बात को लेकर ही आया; किन्तु श्रीकृष्ण जहाँ सदा सावधान संरक्षक है, वहाँ अनर्थ कभी अपने पैर जमा नहीं सका। उसके सब प्रपञ्च शीघ्र वायु में विलीन हो जाते हैं। महाभारत युद्ध का सत्रहवाँ दिन था। कर्ण के सेनापति बनने पर तो दो दिन ही वह युद्ध कर सका था। उसके सेनापतित्व का दूसरा दिन। धर्मराज युधिष्ठिर ने युद्ध के प्रारम्भ में ही कर्ण को ललकार दिया। उन्होंने कर्ण को अपने आघात से मूच्छित भी कर दिया; किन्तु उसे फिर नहीं मारा। सचेत होकर कर्ण ने धर्मराज के रथ के दोनों चक्र-रक्षक मार दिये। युधिष्ठिर का धनुष तथा कवच काट दिये। कवच कट जाने पर वाणों के द्वारा आहत होकर युधिष्ठिर रक्तस्नात हो गये। कर्ण ने उनका रथ भी नष्ट कर दिया। युधिष्ठिर दूसरे रथ पर चढ़कर भागेः किन्तु कर्ण ने उनका पीछा किया। उसने शस्त्र कवचहीन युधिष्ठिर के कन्धे पर हाथ रख दिया। कर्ण चाहता तो युधिष्ठिर को बन्दी बना लेता। दुर्योधन ने उसे यह करने को कहा भी था किन्तु कर्ण को कुन्ती को दिये अपने वचन स्मरण आ गये। शल्य ने भी उसे रोका-धर्मराज तुम्हें दृष्टि से भी भस्म कर सकते है।' कर्ण में जहाँ सब सद्गुण थे वहाँ एक बड़ा दुर्गुण भी था। वह बोलने में वाणी पर नियंत्रण नहीं रख पाता था। इस सम्बन्ध में बहुत अशिष्ट था। अनेक बार उसे स्वयं अपनी अशिष्टता पर पश्चात्ताप हुआ है। उसने युधिष्ठिर का भी अपमान किया। उन्हे उल्टी-सीधी सुनाई- 'उच्चकुल में उत्पत्र होकर क्षत्रियधर्म में स्थित होकर प्राण बचाने के लिये भाग कैसे रहे हो ? तुम क्षत्रियधर्म में निपुण नहीं हो। ब्राह्यणोचित स्वाध्याय तथा यज्ञ करना ही जानते हो। अब लड़ाई में मत आना वीरों को कभी भुलकर भी मत ललकारना। हम जैसों से कडी बात कहोगे तो उसका यही फल होगा। अब शिविर में अथवा अर्जुन के समीप चले जाओ।' कर्ण के द्वारा अत्यन्त आहत तथा अपमानित होकर राजा युधिष्ठिर शिविर में लौट आये। उनका शरीर इस समय यु़द्ध करने योग्य नहीं था और अपमान के कारण अन्तःकरण अतिशय क्षुब्ध था। युधिष्ठिर भीमसेन प्रभृति को कौरवों पर आक्रमण करने के लिए उत्तेजित करके शिविर में आये थे। उस समय अर्जुन संशप्तको के साथ संग्राम में व्यस्त थे। भीमसेन ने कर्ण पर आक्रमण किया। उनके आघात से कर्ण मूर्च्छित हो गया। शल्य उसे वहाँ से हटा ले गया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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