पार्थ सारथि -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
61. ससत्यासत्य
सत्य क्या है ? असत्य क्या है ? इसका निर्णय कर लेना सरल नहीं है। भगवान व्यास का कहना है - न सत्यवचनं सत्यं नासत्यवचनं मृषा। हम जो कुछ जैसा जानते हैं, उसे वैसा ही कह देना सत्य नहीं है। इससे बहुत अनर्थ हो सकता है। चिकित्सक जानते हैं कि रोगी को उसके रोग की गंभीरता बतला देना कितना अहितकर होता है। ऐसे ही अनेक बार अपनी जानकारी को ज्योंका त्यों कह देना अपने अथवा और किसी के लिए बहुत हानि का कारण हो सकता है। हम जो कुछ जैसा जानते हैं, उसके विपरीत बोल देना ही मिथ्या नहीं है। यदि ऐसा करने में अपना निजी स्वार्थ मात्र नहीं है, किसी एक अथवा समूह का हित उद्देश्य है तो वह वाणी अतथ्य होकर भी सत्य है। जिसमें प्राणियों का आत्यन्तिक हित हो, जिससे कही जाय उसका भी परिणाम में मंगल हो तो तत्वदर्शी उस वाणी को सत्य ही मानते हैं। धर्म केवल देह, वाणी, मन की क्रिया में ही निहित नहीं है। धर्म भावना में अधिक, क्रिया में कम है। वैसे तो अर्थ, धर्म, काम ये तीनों पुरुषार्थ त्रिवर्ग कहे जाते हैं। अपवर्ग, मोक्ष के पथिक के लिए तीनों का ही मोह त्याज्य है। उसके लिए अर्थ और काम का राज जितना बाधक है, धर्म का राग उससे कम बाधक नहीं है। इन तीनों का राग त्यागकर ही श्रीकृष्ण के चरणों में अनुराग होता है। जहाँ श्रीकृष्ण-प्रेम की प्राप्ति में ही धर्म प्रतिबन्धक बनकर त्याज्य हो जाता है, वहाँ स्वयं श्रीकृष्ण के लिए धर्म का बन्धन कैसे हो सकता है। वे अच्युत धर्म के प्रभु हैं, सेवक नहीं। अत: उनकी दृष्टि धर्म की स्थूल क्रिया-पर नहीं रहती। धर्म के परिणाम को वे देखते हैं। कर्ता के आत्यन्तिक हित को ही वे अपनाने योग्य मानते हैं। इसके सम्मुख क्रिया का वर्तमान रुप उनकी दृष्टि में अनेक बार उपेक्षणीय होता है। महाभारत युद्ध के उस चतुर्दश दिन के बीत जाने पर रात्रि-युद्ध में दोनों दल के सैनिक बहुत थक गये थे। अर्जुन ने युद्ध विराम की घोषणा करके सबको वहीं विश्राम करने को कहा तो किसी ने भी विरोध नहीं किया। कोई मुख से भले न कहे, प्रतिपक्ष के सैनिकों के हृदय से अर्जुन के लिए आशीर्वाद ही निकला। प्रथम दिन के प्रभात से भी पूर्व जो युद्ध में आ गये थे, वे पूरे दिन और आधीरात तक युद्ध का कठोर श्रम करते-करते अत्यन्त क्लान्त हो गये थे। बहुत आहत हो गये थे। सब वहीं रण-भूमि में ही जैसे भी बना, सो गये। वह दो घड़ी का विश्राम भी बहुत सुखद लगा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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