पार्थ सारथि -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
63. आग्नेयास्त्र निष्प्रभाव
नारायणास्त्र शान्त हुआ तो पाण्डवों की सेना ने कौरवों पर धावा बोल दिया। दुर्योधन ने अश्वत्थामा से कहा- ‘ये सब आपके पिता के हत्यारे हैं। इन पर फिर एकबार इसी अस्त्र का प्रयोग करो।' ‘राजन ! इस अस्त्र का पुन: प्रयोग नहीं किया जा सकता।' अश्वत्थामा ने कहा- ‘दुबार प्रयोग करने पर यह अपने ऊपर ही आता है। आज सम्पूर्ण शत्रु समाप्त हो गये होते यदि श्रीकृष्ण इसकी शान्ति का उपाय न बतला दिया होता। ‘तब कोई दूसरा और अस्त्र उठाओ।' दुर्योधन प्रोत्साहित किया- ‘तुम तो अस्त्रवेत्ताओं में सर्वश्रेष्ठ हो और ये पाण्डव तथा पाञ्चाल तुम्हारे पिता को मारकर अब मंगल मना रहे हैं। तुम्हारे पास दिव्यास्त्रों का अभाव तो है नहीं।' अश्वत्थामा अपने पिता का वध करने वाले धृष्टद्युम्न को देखते ही उसे मारने दौड़ पड़ा। अत्यन्त क्रुद्ध, द्रोणपुत्र ने धृष्टद्युम्न, सात्यकि तथा भीमसेन को बहुत अधिक आहत करके पीछे हटने पर विवश कर दिया। दूसरे कई प्रधान महारथी मार दिये। इससे अर्जुन आये। उन्होंने अश्वत्थामा को ललकारा- ‘तुम में जितना बल, विज्ञान, वीरता हो वह सब प्रकट कर लो। आज तुम बहुत उद्दण्ड हो गये हो। मैं तुम्हारा दर्प दलन कर दूँगा। अश्वत्थामा पहिले ही बहुत कुपित था। पिता की मृत्यु के कारण और अपने अमोघ अस्त्र के व्यर्थ कर दिये जाने के कारण भी। अब अर्जुन की चुनौती सुनकर सावधान होकर रथ पर बैठ गया। जल लेकर आचमन करके पवित्र हुआ। आग्नेयास्त्र को मन्त्र से अभिमन्त्रित करके प्रत्यक्ष–अप्रत्यक्ष सम्पूर्ण शत्रुओं का संहार करने के संकल्प से उसने वह अस्त्र चलाया। वह अस्त्र अग्नि के समान प्रज्वलित था। छूटते ही उससे सहस्त्रों जलते हुए बाण निकल निकलकर आकाश में छा गये। चारों ओर धूम रहित आग की ऊँची लपटें उठने लगीं। उन लपटों ने अर्जुन का रथ घेर लिया। वायु अत्यन्त उष्ण हो गया। सूर्य का तेज मन्द पड़ गया। दिशाएँ जलने लगीं, जलाशयों का जल तप्त होकर खौलने लगा। उस अस्त्र से असंख्य वाण, दिशा, विदिशा, और आकाश में बरस रहे थे। वे सब बाण सर्वत्र अग्नि फैला रहे थे। मनुष्य, अश्व, हाथी सब चीत्कार करते इधर-उधर दौड़ रहे थे और भस्म होकर गिरते जा रहे थे। ऐसा लगता था कि महाप्रलय प्रारम्भ हो गयी है।[1] कौरव हर्ष से सिंहनाद करने लगे थे। अर्जुन का रथ तथा एक अक्षौहिणी सेना उन प्रचण्ड लपटों में अदृश्य हो गयी थी। चारों ओर घोर अन्धकार छा गया था। लेकिन अर्जुन अपने रथ पर स्वस्थ बैठे थे। उन्होंने अश्वत्थामा के सम्पूर्ण अस्त्रों के उपशम का संकल्प करके ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ महाभारत को ध्यान से पढ़ने पर लगता है कि आग्नेयास्त्र तथा ब्रह्मास्त्र भी कई प्रकार के थे। युद्ध में सामान्य आग्नेयास्त्र का तथा ब्रह्मास्त्र का अनेक बार उपयोग हुआ है। यह उनसे सर्वथा भिन्न अमोघ आग्नेयास्त्र था। ऐसे ही अश्वत्थामा ने अमोघ ब्रह्मास्त्र या ब्रह्मशिर नामक अस्त्र का भी प्रयोग आगे जाकर किया। आज केवल परमाणु बम का प्रयोग होने पर इस अवस्था की कल्पना की जा सकती है।
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