पार्थ सारथि -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
68. कर्ण मारा गया
कर्ण ने अपने को ब्राह्मण बतलाकर भगवान परशुराम से अस्त्र-ज्ञान प्राप्त किया था। पता लगने पर उन्होंने शाप दे दिया था कि प्राणान्त का समय आने पर उसे ब्रह्मास्त्र भूल जायगा। कर्ण के प्रमाद से आखेट के समय उसका एक बाण मृग के स्थान पर एक ब्राह्मण की गाय को लग गया था। ब्राह्मण ने शाप दिया था कि ‘मरने का समय आने पर युद्ध भूमि में उसके रथ का पहिया पृथ्वी में धँस जायगा।’ कर्ण वीर था। सुप्रसिद्ध दानी था। जीवन में किसी भी याचक को उसने ‘नहीं’ कहकर लौटाया नहीं था। श्रीकृष्ण के स्वरूप को वह जानता था। केवल अर्जुन उसके मन में प्रबल स्पर्धा थी। इसे दोष नहीं कहा जा सकता; किन्तु भगवदाश्रित व्यक्ति का-भक्त का विरोध कभी भी कल्याणकारी नहीं होता। कर्ण का एक बड़ा दोष था कि वह कुसंग में पड़ गया था। दुर्योधन के सभी कुटिल कर्मो का समर्थक रहा था। दूसरे वह अत्यन्त कटुभाषी था। तीसरे भक्तापराधी था। ये तीनों ही दोष भगवान को उससे रुष्ट कर देने के लिये पर्याप्त थे। वैसे वह भी भीष्म के समान श्रीकृष्ण के सम्मुख मरना ही श्रेयस्कर मानता था। नागवाण के असफल होने पर, नाग के मारे जाने पर कर्ण ने फिर अर्जुन पर वाण-वृष्टि प्रारम्भ की। अर्जुन ने भी अपने मुकुट नष्ट करने का प्रतिशोध तत्काल लिया। कर्ण का शरीर अपने वाणों से अत्यन्त आहत कर दिया और उसका मुकुट, कुण्डल तथा कवच भी वाणों से टुकड़े-टुकड़े काट दिये। अर्जुन के आघात से कर्ण मूर्च्छित हो गया। उसके हाथ से धनुष छूटकर गिर पड़ा। अर्जुन जहाँ प्रसिद्ध वीर थे, वहीं अत्यन्त सदय तथा धर्म भीरु भी थे। उनके प्रेम के अतिरिक्त उनके सद्गुणों ने भी श्रीकृष्ण को उनका समर्थक सखा बना लिया था। आहत, मूर्च्छित कर्ण पर विजय ने बाण वर्षा बन्द कर दी। श्रीकृष्ण ने ललकारा- ‘विजय ! यह शिथिलता क्यों ? जो धर्मयुद्ध के नियम न मानता हो, जिसने शस्त्रहीन तुम्हारे पुत्र अभिमन्यु को मारने में संकोच नहीं किया, उस शत्रु के ऊपर दया व्यर्थ है। उसे संकट में देखकर रुको मत ! मार डालो उसे।’ अर्जुन ने यह आज्ञा स्वीकार कर ली; किन्तु कर्ण के रथ को केवल वाणों से चारों ओर से ढक दिया। चेतना लौटने पर कर्ण ने इन वाणों को काट दिया और अर्जुन तथा श्रीकृष्ण पर प्रहार करने लगा। सकट में धर्म और भगवान स्मरण आजायँ तो विपत्ति चाहे जितनी बड़ी हो, विदीर्ण हो जाती है। कर्ण के साथ उल्टी बात हुई। उसको ब्रह्मास्त्र भूल गया। उसके रथ का वाम चक्र भूमि में धँसने लगा तो सारथि तथा रथ के अश्व लड़खड़ाने लगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज