पार्थ सारथि -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
90. शूरभक्त सुधन्वा
धर्मराज युधिष्ठिर के तीसरे अश्वमेध यज्ञ अश्व छूटा था। अश्वरक्षा का दायित्व पहिली दो बार के समान अर्जुन पर ही था। इस बार उनके साथ प्रद्युम्न, कृतवर्मा, सात्यकि जैसे प्रधान वृष्णिवंशी महारथी भी थे। अश्वमेध यज्ञ का अश्व सभी राज्यों में जाय, यह आवश्यक नहीं है। उस मन्त्रपूत अश्व को कोई कहीं हाँककर तो ले नहीं जाता। यह स्वच्छापूर्वक चलता है और रक्षक-समूह उसका अनुगमन करता है। एक वर्ष में अश्व का लौट आना आवश्यक माना जाता है। जो नरेश अश्व को रोकने में समर्थ हैं, प्राय: अश्व वहीं जाता है। मार्ग के राज्य तो मार्ग में सहज ही आते हैं। राजसूय यज्ञ में दिग्विजय करना आवश्यक होता है; किन्तु बहुत छोटे राज्य उस समय भी छोड़ दिये जाते हैं; क्योंकि किसी को अपमानित करना अथवा कहीं व्यर्थ संहार करना किसी धर्मात्मा को प्रिय नहीं होता। जो बहुत छोटे राज्य हैं, उनके शासक मानधनी हुए, अपने सम्मान की रक्षा के लिए ही युद्ध करने पर उतर आये तो व्यर्थ हत्या के अतिरिक्त क्या हाथ लगेगा। अत: जो बहुत प्रख्यात वीर हैं, दिग्विजय के समय उनका कर दे देना ही आवश्यक माना जाता है। छोटों की उपेक्षा को दोष नहीं माना जाता। चम्पकपुरी (चम्पा) छोटा-सा पर्वतीय राज्य था। समृद्ध था और वहाँ के शासक बहुत शान्ति प्रिय थे। वहाँ के राजा हंसध्वज की कोई कामना राज्य-विस्तार की नहीं थी। अपनी प्रजा प्रसन्न है, सुखी-सन्तुष्ट है और धार्मिक है, यह उनके लिए पर्याप्त था। इस छोटे पर्वतों के द्वारा सुरक्षित राज्य की ओर आँख उठाने का लोभ किसी को नहीं हुआ। मगधराज जरासन्ध जैसा दुर्दम एवं असहिष्णु भी इधर नहीं आया तो दूसरा कोई क्यों आता। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के लिए उनके भाइयों ने जो दिग्विजय-यात्रा की, उसमें इस राज्य की उन्होंने उपेक्षा कर दी। दुर्गम वन तथा पर्वतों में बसे छोट-छोटे राज्यों को विजय करने में व्यर्थ श्रम, सैनिक तथा समय कौन लगाता। इससे कोई लाभ नहीं था। बहुत कठिन यात्रा करके सफल हो जाने पर भी कोई बड़ा सुयश मिलने की सम्भावना नहीं थी। इस राज्य में महाराज उग्रसेन के राजसूय यज्ञ की दिग्विजय-यात्रा में प्रद्युम्न नहीं आये थे और न उनके अश्वमेध के समय अश्व के पीछे अनिरुद्ध ही पहुँचे थे।[1] महाराज युधिष्ठिर के भी दो अश्वमेध यज्ञ हो चुके थे; किन्तु उनका अश्व यहाँ नहीं आया था। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 'श्रीद्वारिकाधीश' में इन यज्ञों का विस्तार से वर्णन हैं।
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