पार्थ सारथि -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
75. अश्वत्थामा से रक्षा
दुर्योधन के घायल होकर गिर जाने पर जब पाण्डव श्रीकृष्ण के साथ वहाँ से चले आये तब उसको देखने सञ्जय वहाँ पहुँच गये थे। सञ्जय के द्वारा दुर्योधन ने अश्वत्थामा, कृपाचार्य, कृतवर्मा तक अपना समाचार भेजा। तीनों साथ ही थे। साथ ही दुर्योधन के समीप पहुँचे। दुर्योधन की दशा देखकर अश्वत्थामा को बड़ा क्रोध आया। उसने पाञ्चालों के वध की प्रतिज्ञा की। दुर्योधन ने कृपाचार्य को जल लाने को कहा और उनके द्वारा ही अश्वत्थामा का सेनापति पद पर अभिषेक कराया। अश्वत्थामा की आन्तरिक अभिलाषा प्रारम्भ से कौरव महासेनापति बनने की थी। द्रोणाचार्य के मारे जाने पर तो उसने कर्ण से विवाद भी किया था; किन्तु तब दुर्योधन ने उसकी ओर ध्यान नहीं दिया और कर्ण के मारे जाने पर उसका साहस साथ नहीं दे सका। अत: उसने स्वयं शल्य को महासेनापति बनाने की सलाह दी। आज जब सेना थी ही नहीं, स्वयं दुर्योधन मरणासन्न था, अश्वत्थामा की वह अभिलाषा पूर्ण हुई। अपने मामा कृपाचार्य और कृतवर्मा, केवल इन दो-को अनुगत बनाकर वह कौरव महासेनापति पद पर अभिषिक्त हुआ। दुर्योधन के समीप से तीनों कौर-शिविर की ओर चले थे; किन्तु तभी शंख एवं वाद्यघोष करते पाण्डव उस शिविर पर अधिकार करने आ गये। तीनों को लगा कि उन पर ही आक्रमण करते वे आ रहे हैं। तीनों एक साथ भागे और भागते चले गये। बहुत दूर वन में जाकर एक खूब सघन वट-वृक्ष के नीचे तीनों ने रात्रि व्यतीत करने का निश्चय किया। तीनों ही बहुत थके थे। बहुत अधिक घायल भी हो चुके थे आज दोपहर तक के युद्ध में। उनको विश्राम की आवश्यकता थी। कृपाचार्य और कृतवर्मा सो गये; किन्तु अश्वत्थामा चिन्ता तथा क्रोध के कारण जागता रहा। कोई भी निमित्त किसके हृदय के सद्भाव अथवा दुर्भाव को कब जगा देगा कुछ कहा नहीं जा सकता। अश्वत्थामा सम्पूर्ण वेद-वेदांगों का ज्ञाता था। धनुर्वेद के सब अंगोंपांगों का उसे ज्ञान था। द्रोणाचार्य ने उसके अतिरिक्त केवल अर्जुन को ब्रह्मास्त्र का वह श्रेष्ठतम महास्त्र प्रदान किया था जो अमोघ था। साथ ही तप करके आचार्य ने भगवान शंकर से अपने इस पुत्र के लिए अमरत्व का वरदान प्राप्त कर लिया था। वेद-वेदांग ज्ञान, अद्वितीय अस्त्रवेत्ता होना तथा अमरत्व का वरदान भी अश्वत्थामा के हृदय के ओछेपन को मिटा नहीं सका। जहाँ वह अत्यन्त उच्चाभिलाषी था, वहीं बहुत अधिक क्रूर तथा कायर भी था। युद्ध में जब भी कठिनाई में पड़ा, भाग खड़ा हुआ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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