कृष्णांक
श्रीकृष्णलीला में माधुर्य रस
यह तो हुआ संक्षेप में रसों के परस्पर सम्बन्ध का दिग्दर्शन और सब रसों का माधुर्य-रस में समावेश। अब लेखक के शीर्षक के अनुसार श्रीकृष्ण लीला में माधुर्य क्या है ? इस पर विचार करना है। कोई भी चरित्र हो, जब तक उसमें मधुरता न होगी तब तक उसके श्रवण या मनन करने वालों में भावावेश नहीं हो सकता, और भाव के बिना भक्ति एवं भक्ति के अभाव में प्रेम असम्भ व है। प्रेमी के प्रेम का स्थायी रूप तभी होता है जब एक रस का अवलम्बन मिलता है। जहाँ माधुर्य नहीं वहा रस नहीं, मधु (मिठास) – रहित नीरस वस्तु में प्रेम तो दूर की बात है। स्वार्थ बिना कामना भी नहीं होता। गुणरहितं कामनारहितं प्रतिक्षणवर्द्ध- गुण, कामना से रहित पल-पल में बढ़ने वाला एकरस और अति सूक्ष्म है, अनुभव द्वारा ही कुछ जाना जा सकता है। मधुर रसाश्रय प्रेम की परिपुष्टि विरह से होती है। मधुर रसमयी रासलीला में श्रीराधिका जी को अकेली छोड़ श्रीकृष्ण अन्तर्धान हुए। उस समय की वियोगिनी श्रीराधिका की उक्ति – हा नाथ ! रमण ! प्रेष्ठ ! क्वासि क्वासि महाभुज । कैसी मधुर है ? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भ. सू.
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