कृष्णांक
श्रीकृष्णलीला में माधुर्य रस
शान्ति के गौरव, दास्य के सेवाभाव, सख्य के असंकोच भाव की अपेक्षा ममता की मात्रा अधिक होती है। इसी से ताडन, लालन, पालन आदि प्रधान हो जाते हैं। यह अपने को पालक मानकर श्रीकृष्ण को पाल्य समझता है। वात्सल्य अमृतस्वरूप है। मां यशोदा कृष्ण को माखन के माट में हाथ देते हुए देखकर कहती है – कृष्ण क्वासि करोषि किं पितरिति श्रुत्वैव मातुर्वच: वात्सल्य का मूर्तिमान् रूप इससे अधिक कहाँ मिलेगा ? मैया मोहै दाऊ बहुत खिजायौ । मां यशोदा – बकन देउ बलराम चवाई मिथ्यावादी धूत । श्रीकृष्ण में निष्ठा, सेवाभाव और असंकोच के साथ ममता एवं लालन भी रहता है। मधुर रस में पाचों रस हैं, जिस प्रकार आकाशादि भूतों के गुण क्रमश: अन्य भूतों से मिलते हुए पृथ्वी में सब गुण मिल जाते हैं, इसी प्रकार मधुर रस में भी सब रसों का समावेश है। रसरूपरूप में श्रीकृष्ण की लीलाएं माधुर्य रस में पगी हुई हैं। इन मधुर लीलाओं में रहने वाले आनन्द (रस) का वर्णन करने में जब सजीव मन और वाणी भी असमर्थ हैं, तब निर्जीव लेखनी क्या वर्णन करे ?
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ कविकर्णकपूर
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