कृष्णांक
प्रेमावतार श्रीकृष्ण
अब हम भगवान के कुछ बाल-चरित्रों का भी माधुर्य चखेंगे। एक दिन की बात है कि बाल-कृष्ण पृथ्वी में पड़े हुए मां की गोद में चढने के लिये रो रहे थे, किन्तु मां गृह-कर्म में व्यस्त थी, इसलिये उनकी कुछ परवाह नहीं की। इसी समय देवर्षि नारद भूर्लोक में पर्यटन करते हुए इस माया-मानव की लीलाओं को देखने के लिये व्रजरानी के घर आये। वहाँ वे देखते हैं कि कृष्ण जमीन पर पड़ा छटपटा रहा है और माता की गोद में चढ़ने के लिये सुबक-सुबककर रो रहा है, पर मां उसकी तनिक भी परवाह नहीं करती। इस दृश्य को देखकर नारदजी कहने लगे- किं ब्रूमस्त्वां यशोदे कति कति सुकृतक्षेत्रवृन्दानि पूर्वम् । ‘यशोदा ! तू बड़ी भाग्यशालिनी है। तुझे क्या कहें ? न जाने तूने पूर्व जन्म में तीर्थवृन्दों में जाकर कितने अगणित महान सुकर्म किये हैं। अरी ! जिस जगन्नियन्ता के प्रसाद को इन्द्र, ब्रह्मा और महादेव भी प्राप्त नहीं कर सकते, वही पूर्णब्रह्म तेरी गोदी में चढ़ने के लिये पृथ्वी पर पड़ा छटपटा रहा है। और भी लीजिये – कृष्णेनाम्ब ! गतेन रन्तुमधुना मृद्भक्षिता स्वेच्छया एक दिन की बात है कि कृष्ण ने एक मिट्टी की डली मुंह में डाल ली। फिर क्या था, बलराम की बन आयी। आप झट माता के पास पहुँचे और लगे कृष्ण की चुगली खाने। बोले– ‘मैया ! आज जब कृष्ण खेलने गया था तो मेरे मना करने पर भी उसने मिट्टी खा ली’। माता भी इस बात से अपरिचित न थी कि बलराम बड़ा चुगलखोर है, इसलिये बलदेव की बात पर विश्वास न कर वह स्वयं कृष्ण से पूछ बैठी, ‘क्यों रे, क्या यह बात सच है कि आज तूने माटी खायी है ?’ कृष्ण ने कहा– ‘मैया ! यहबात किसने गढ़ दी, यह तो सरासर झूठ है, विश्वास न हो तो मेरा मुंह देख ले’। माता ने कहा– ‘अच्छा तो मुंह खोल’। फिर क्या था ? भगवान ने अपना मुंह खोल और माता ने उसके छोटे से मुंह में चराचर विश्व को देखकर भोचक्की सी रह गयी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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