|
हमारे प्राचीन शास्त्रकारों ने किसी ग्रन्थ के तात्पर्य का निर्णय करने के लिये कुछ उपाय[1] बतलाये हैं। उनके अनुसार गीता के आरम्भ एवं उपसंहार को तथा उस बात को जो वहाँ पर बार-बार दोहरायी गयी है, देखने से इम इस निश्चय पर पहुँचते हैं कि गीता के उपदेश द्वारा अर्जुन को युद्ध में प्रवृत्त करना ही भगवान का प्रधान उद्देश्य था। यद्यपि सभी टीकाकारों का यही मत है कि अर्जुन से युद्ध करवाना ही भगवान श्रीकृष्ण का मुख्य उद्देश्य था, फिर भी वे यह कहते हैं कि अर्जुन के लिये भगवान ने जो मार्ग निर्दिष्ट किया वह मुक्ति का साक्षात साधन नहीं है। इससे उनका यह अभिप्राय है कि अर्जुन उस साक्षात साधन के अभ्यास का पात्र नहीं था। उनकी इस धारणा के कई कारण हैं, जिनमें श्रीशंकराचार्य की युक्ति मुझे सबसे अधिक प्रबल मालूम होती है और इसलिये संक्षेप से मैं उसी का विवेचन करूँगा। उनकी युक्ति के मूल में उनकी यह धारणा है कि ‘आत्मा ही कर्मों का कर्ता और उनके अच्छे-बुरे फलों का भोक्ता है’ यह माने बिना कर्म हो ही नहीं सकते, परन्तु वास्तव में आत्मा न तो कर्ता है और न भोक्ता है। मनुष्य के लिये यह असम्भव है कि वह एक ही समय में दो परस्पर विरोधिनी भावनाएं कर सके, अत: क्रम समुच्चय का सिद्धान्त ही युक्तियुक्त है। (देखिये गीता 2।11 पर शांकरभाष्य)
यद्यपि श्रीशंकराचार्य जी की अलौकिक प्रतिभा का मैं पूर्णतया कायल हूँ, और मेरी उनके अद्वितीय गुणों के प्रति अत्यन्त श्रद्धा है, फिर भी मैं उनकी इस युक्ति पर अपनी तुच्छ बुद्धि के अनुसार कुछ लिखने की धृष्टता करता हूँ। प्रत्येक जीव को चाहे वह बद्ध हो या मुक्त, अपने प्रारब्ध कर्मों के अनुसार न्यानाधिक मात्रा में सुख-दु:ख भोगने ही पड़ते हैं, किन्तु कर्मयोगी का उनके प्रति समता का भाव होता है। जैसा कि भगवान ने गीता 2।38 में कहा है[2]। कर्मों के कर्तापन के सम्बन्ध में भी भगवान ने यह कहा है कि कर्मयोगी अपने आप को कर्ता नहीं मानता (देखिये गीता 18।17)[3] यदि यह कहा जाय– और शंकराचार्य ने कहा भी है कि भगवान का यह वाक्य कर्म संन्यासियों को लक्ष्य करके कहा गया है, कर्मयोगियों के लिये नहीं तो, इस कथन के लिये प्रमाण की आवश्यकता होगी, क्योंकि भगवान के उपर्युक्त वचन में हिंसा करने का उल्लेख आया है, जो युद्ध में ही हो सकती है और युद्ध के लिये भगवान अर्जुन को उपदेश देते हैं। अत: अर्जुन के लिये ही इस वाक्य का प्रयोग किया गया है, यह स्पष्ट है।
|
|