विषय सूची
श्रीकृष्णांक
भगवान श्रीकृष्ण और भारतीय स्त्रियाँ
सच्ची स्त्रियों की अर्थात जिनका अपने प्रति, अपने पतियों के प्रति और परमात्मा के प्रति सच्चा भाव है, उनकी शक्ति और महिमा को हमारे साहित्य में संसार के और किसी साहित्य की अपेक्षा कुछ कम माना गया हो, सो बात नहीं है। महाभारत में[1] नारी जाति को पवित्रता और प्रेम की मूर्ति, गृहस्थ का सुवर्ण प्रदीप और लक्ष्मी का स्वरूप कहा गया है। श्रीमद्भगवद्गीता में नारी को इन्द्रियों और आत्मा के युद्ध में मनुष्य की सहायता के लिये परमात्मा का दिया हुआ सहायक बतलाया गया है। भारतीय स्त्रियों का उच्च्तम आदर्श सरस्वती है, जो कला, साहित्य और भक्ति की मूर्ति मानी गयी है, जो निर्दोष पवित्रता रूप अति शुभ्र वस्त्र धारण किये हुए है और जो वाणी संगीत और आत्मा की पूर्णता के द्वारा मनुष्यों को परमात्मा की ओर ले जा रही है। भगवन् श्रीकृष्ण ने इन्हीं तथ्यों को श्रीमुख से गीता के निम्नलिखित श्लोकार्ध में अभिव्यक्त किया है- ‘धर्माविरुद्धो भूतेषु कामोडस्मि भरतर्षभ।’ उनकी अत्यन्त दिव्य और कृपापूर्ण विभूतियों में ‘धर्मानुकूल काम’ भी एक विभूति है। स्त्री-पुरुषों का दाम्पत्य-प्रेम यदि नैतिक और आध्यात्मिक प्रेम का अनुचर हो तो वह ईश्व्र की ओर ले जाने वाली शक्ति बन जाती है और यदि ऐसा न हो तो वही नरक को ले जाने वाली शक्ति बन जाती है। भगवान निरे काम को तो नरक का ही द्वार बतलाते हैं- त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मन: ।। श्रीमद्भगवद्गीता 16।21
अर्थात काम, क्रोध और लोभ ये तीन नरक के द्वार और आत्मा को धोखा देने वाले हैं। इसलिये इनका त्याग करना चाहिये। यही नहीं, गीता के तीसरे अध्याय में[2] भगवान काम को आत्मा का वैरी बतलाते हैं और आगे चलकर मनुष्य को इसे ज्ञानरूपी खड्ग से काट डालने का उपदेश देते हैं। किन्तु निर्दोष और ऊँचे दर्जे का काम परमात्मा की विभूतियों में से एक है। गीता के दसवें अध्याय में भगवान ने स्त्रियों में कीर्ति, श्री, वाणी, स्मृति, मेधा, धृति और क्षमा को अपनी विभूति कहा है। इनसे केवल गुणों का ही संकेत नहीं है, किन्तु इन गुणों की अधिष्ठात्री देवियों का ही नहीं, अपितु गुणों का भी निर्देष है।
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |